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पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१२४

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१०१ दीनता एक ते अनेक , अङ्ग धाई सेत सारी संग, तरल तरंग भरी गंग' सी है ढरी है ॥२५२॥ रजनी को काजु नर द्योस ही ते सोचै थ्यो, ।, धोसंहू के काज को विचार यहै गति है । हँस खेलै खाय न्हाय बोलै :डोले. श्रावै जाय," .. मन ही. की रुचि नीकेतन ही हिताति है । 'श्रालमा कहै हो :दिनु पूरी गथु पाये ऐसी, । थोरी पंजी बीच जन्म मौतियो सिराति है । घरी है गनतु धरियार ज्यों ज्यों याजत है, . जानतु है नहीं कि घजाये श्रायु जाति है ॥२५३॥ जनमत छिति पखो पलना बहुरि परि, . हाथी हय सुखासन- पोई यहतु है । . अरिनि के ग्रस परि विपयनि यस परि, जुपतिन रस परि मुखहि चहतु है। तासों तोहि पनि परी है मेरे प्यारे प्रान, . . हाहा परकृते छाँड़ि- 'आलम' कहतु है । प्रनति सरीर “सोल-परिये ही -पर रुचि, .. ! एखोई .रहतु: ता ते पखोई चहतु है ॥२४॥ morror -१३:३१, १७ दिसम्बर २०१९ (UTC)१३:३१, १७ दिसम्बर २०१९ (UTC)सनी प्रसाद चौरसिया (वार्ता)........... १-परनि परी है = पड़ने की शादत पड़ गई है। २-परश्न = प्रकृति, । स्वभाव । .... .. .. . '; .