सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आलम-केलि.djvu/१२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

यालरा-कॉल " "शिव को कवित्त गोरन मुढीरो लिये. संभु ताको मत दिये आपुन अकेलो संग गौरी तिहि लोग ना-1 घरुनी विभूतियार पार लै लैमुनलाय.. उरह लगाये पुति भावे 'फाछु, मोग.ना । अधारीले धौरे२ घरी संपत्ति धतूग भरी,

, वृषम लैः चले जाय. वो ताको लोग ना ।

जटा दिटकाये छथि छोनो में विछाये छाल..:.. " यासुकी मिरागीयाकी टेक बैठो जोगना ॥२५॥ , .: देवी को कवित्त टेलीको कवित्त... " मौन कोदरसे पुन्य मीनारे. नेरे आयो, • छन-छाँह परसत छनि सौ छियो हो ।, मंगला के मंगल ते मंगल अनेग भये, हिंगलाज राग्यो लाज. याहि काज नयो हो । सेषमति 'सेना ही सेप की सौ दीनी तुम, रापरे सिखाये सिख ढिग आनि लयो हो । १. पारोमोजी । २-धीरे-निकट । ३-जोगना = योगी।