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आवारागर्द


दोस्त ने कहा "खैर हुई आँख बचगई। पर यार यह बुरा हुआ। मगर यह सब तुम्हारा ही गधापन है। तुम कहते हो कि हम गधे हैं, पर हम कहते हैं, तुम गधे हो!"

"मै गधा क्यों हॅू?"

"इसलिए कि यारों को नहीं ले गये। यार लोग गये होते तो तुम्हारी ऐसी पूजा होना क्या मज़ाक थी? ले लेकर हाकी-स्टिक जो टूट पड़ते तो कयामत वर्षा कर देते और लाखों में व्याह रचा कर आते।"

एक ने कहा—"मगर यार, तुम घरवाली और पुराने साले-सुसरों को देखकर झेप क्यों गये? कह देते-तुम भी मुकर्रिर रहो, ये भी रहें। विशाल उदार हिन्दू धर्म में सब के लिये जगह है, अग्रेज़ों ने भी क़ानून में दरवाजे़ खिड़कियाँ छोड़ रखीं हैं।"

"मैने बहुत कहा यार, मगर साले लोगों ने अधेर मचा दिया। समझदार तो थे नहीं, बस लगे चरनदास से पूजा करने! एक तो देहाती, दूसरे जवान हट्टे-कट्टे, तीसरे उनका घर। लाचारी हो गई।"

दोस्तों ने मूछे मरोड़ीं और आस्तीने चढ़ाई—"वाह यार, चलो एक बार फिर। लाखों मे शादी कराये। नही तो डोला उठा लावे। भला जिसका तेलबान चढ़ गया उसकी शादी कही और हो सकती है?"

रामनाथ का चेहरा सफेद हो गया। सिगरेट फेंक कर उसने कहा—"वह मौका अब नहीं रहा। दोनों सुसरों ने मिल मिलाकर झगड़ा खतम कर लिया। सुसर नम्बर २ कहने लगे—'मेरी इज्जत अब कैसे बचे? इसी मंढे पर लड़की की शादी अब कैसे हो?' सुसर नम्बर १ बोले—'आपकी इज्जत हमारी इज्जत है। मेरा लड़का हाज़िर है।' झट देखते-देखते पाजी साले को जामा