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आवारागर्द


डाक्टर साहब जैसे चौक पड़े। एक वेदना का भाव उनके ओठों पर आया और उन्होने धीमे स्वर से कहा "जी हॉ, वह दुखदाई घटना इसी घड़ी से सम्वन्ध रखती है।"

मित्र गण चौकन्ने हो गये। मिस्टर चक्रवती वोल उठे "क्या मै इस घटना का वर्णन सुन सकता हूँ?"

डाक्टर ने उदास होकर कहा "जाने दीजिये मिस्टर चक्रवर्ती, उस दारुण घटना को भूल जाना ही अच्छा है, खास कर जब उसका सम्बन्ध मेरी इस परम प्यारी घड़ी से है।"

परन्तु मिस्टर चक्रवर्ती नही माने, उन्होंने कहा "यह तो अत्यन्त कौतूहल की बात मालूम होती है। यदि कष्ट न हो तो कृपा कर अवश्य सुनाइये। यह जरूर कोई असाधारण घटना रही होगी, तभी उससे आप ऐसे विचलित होगये हैं।"

"असाधारण तो है ही।" कह कर कुछ देर डाक्टर चुप रहे फिर उन्होंने एक-एक करके प्रत्येक मित्र के मुख पर दृष्टि डाली। सब कोई सन्नाटा बाँधे डाक्टर के मुँह की ओर देख रहे थे। सब के मुख पर से उनकी दृष्टि हट कर घड़ी पर अटक गई। वे बड़ी देर तक एक टक घड़ी को देखते रहे, फिर एक ठण्डी सॉस लेकर वोले—"आपका ऐसा ही आग्रह हैं, तो सुनिये।"

(३)

धीरे धीरे डाक्टर ने कहना शुरू किया—"चौदह साल पुरानी बात है। सूबेदार कर्नल ठाकुर शार्दूलसिंह मेरे बड़े मुरब्बी और पुराने दोस्त थे। वे महाराज के रिश्तेदारो मे होते थे। उनका रियासत में बड़ा नाम और दरबार मे प्रतिष्ठा थी। उनकी अपनी एक अच्छी जागीर भी थी। वह देखिये, सामने जो लाल हवेली चमक रही है, वह उन्ही की है। बड़े ठाट और रुआब के आदमी थे, अपने ठाकुरपने का उन्हें बड़ा घमण्ड