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मरम्मत


दिलीप आश्चर्य चकित होकर रजनी को देख कर मुस्करा रहे थे। उन्हें कुछ भी बोलने की सुविधा न देकर राजेन्द्र ने रजनी की ओर देख कर कहा—"और यह महाशय, मेरे सहपाठी, कहना चाहिये मेरे शिष्य हैं, रसगुल्ला खिलाने और रसगुल्ले से भी मीठी गप्पे उड़ाने में एक है। जैसी तू पक्की लोमड़ी है वैसे ही यह पक्के गधे हैं। मगर यूनीवर्सिटी की डिगरी तो लिये ही जाते हैं खाने-पीने मे पूरे राक्षस हैं। ज़रा बन्दोवस्त ठीक ठीक रखना।"

राजेन्द्र ही-ही कर हँसने लगा। फिर उसने दिलीप के कंधे पर हाथ रख कर कहा—"दिलीप, रज्जी हम लोगो की बहिन है, ज्यादा शिष्टाचार की जरूरत नही, बैठो और बेतकल्लुफ 'तुम' कह कर बातचीत करो।"

जब तक राजेन्द्र कहता रहा रजनी चुप चाप सिर नीचा किये सुनती रही, एकाध बार वह मुस्कराई भी, पर एक अपरचित युवक के सामने इतनी घनिष्टता पसंद नही आई।

दिलीप ने कहना शुरू किया—"रज्जी, तुम्हारा परिचय पाकर मुझे बड़ा आनन्द हुआ। राजेन्द्र ने बार-बार तुम्हारी मुक्त कण्ठ से प्रशंशा की थी। अब मुझे यहाँ खींच भी लाये। बड़े हर्ष की बात है कि तुम अपने कालेज में प्रथम रहती रही हो तुम नारी-रत्न हो, मैं तुम्हें देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूँ।"

रजनी ने उनका उत्तर न देकर केवल मुस्करा भर दिया, फिर उसने भैया से कहा "जलपान नहीं हुआ न, यही ले आऊँ?" वह जाने लगी तभी दुलारी ने आकर कहा—"भैया, जलपान बैठक मे तैयार है।"

राजेन्द्र ने कहा—"यहीं ले आ। तुम ठहरो रजनी, दुलारी ले आवेगी।"