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आवारागर्द


लाल ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा "ओह! आप यदि प्रेम के प्यासे हैं तो अभी भी समय है मिस्टर सिंह, मैं आपकी सहायता कर सकता हूँ। आप क्या प्रेम-रस चखा चाहते हैं?"

बहुत दिन बाद मै एकाएक हँस पड़ा। हँसने की बात ही थी, अब ५० साल जीवन के पार करने पर मै प्रेम का रस चख सकता हूँ? यह तो बड़ी ही अजीब बात है।

मेरे हँसने का मतलब मिस्टर लाल समझ गये। उन्होंने कहा 'प्रोफेसर, आप क्या मेरी बात को असम्भव समझते हैं?'

'ओह! बिल्कुल असम्भव, मिस्टर लाल।'

'परन्तु मै शर्त लगाता हूँ।'

'अब मुझे बनाओ मत भाई।'

'ओह! आपको एक बात का पता नही है, प्रोफेसर।'

'कौन-सी बात का?'

'आप यूरोप कभी गये या नहीं?'

'नहीं गया।'

'तभी! यूरोप में कुछ ऐसी संस्थाएँ हैं, जो पत्र-व्यवहार से दोस्ती करा देती हैं। उन्हें कुछ फ़ीस दे देनी पड़ती है और लिख देना पड़ता है कि इस प्रकार के आदमी से हमें दोस्ती करनी है। बस, वे आनन-फानन सब बन्दोबस्त कर देते हैं।'

मैने सुन कर अचरज से कहा—'यह तुम कह क्या रहे हो, मिस्टर लाल।'

'आप सुनिए तो। मेरी डायरी में ऐसी संस्थाओं के कुछ पते हैं। ठहरो, देखता हूँ।' यह कह कर उन्होने अपनी डायरी लेकर उलट-पलट करनी शुरू की। थोड़ी देर में बोले—'मिल गया। अभी लिखो, कहिए आप कैसे आदमी से दोस्ती किया चाहते हैं?'