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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/२४

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आखिर उनका सोचना सही निकला और थोड़ी देर बाद दीवार के दूसरी तरफ रोशनी नजर आई । साफ मालूम हुआ कि बगल वाली दीवार तोड़ कर किसी ने दो हाथके पेटे का रास्ता बना लिया है ।

अभी तक उन्हें इस बात का गुमान भी न था कि उनसे मिलने के लिए कोई आदमी इस तरह दीवार तोड़ कर आवेगा । उस सींध के रास्ते हाथ में रोशनी लिए एक लम्बे कद का आदमी स्याह पोशाक पहिरे मुंह पर नकाब डाले उनके सामने आ खड़ा हुआ और बोला :

आदमी : मैं तुम्हें छुड़ाने के लिए यहाँ आया हूँ, उठो और मेरे साथ यहाँ से निकल चलो ।

बीर० : इसके पहिले कि तुम मुझे यहाँ से छुड़ाओ, मैं जानना चाहता हूँ कि तुम्हारा नाम क्या है और मुझ पर मेहरबानी करने का क्या सबब है ?

आदमी : इस समय यहाँ पर इसके पूछने की कोई जरूरत नहीं, क्योंकि समय बहुत कम है । यहाँ से निकल चलने पर मैं अपना पता तुम्हें दूंगा, इस समय इतना ही कहे देता हूँ कि तुम्हें बेकसूर समझ कर छुड़ाने के लिए आया हूँ ।

बीर० : सब आदमी जानते हैं कि मुझ पर कुंअर साहब का खून साबित हो चुका है, तुम मुझे बेकसूर क्यों समझते हो ?

आदमी : मैं खूब जानता हूँ कि तुम बेकसूर हो ।

बीर० : खैर, अगर ऐसा भी हो तो यहाँ से छूट कर भी मैं महाराज के हाथ से अपने को क्योंकर बचा सकता हूँ ?

आदमी : मैं इसके लिए भी बन्दोबस्त कर चुका हूँ ।

बीर० : अगर तुमने मेरे लिए इतनी तकलीफ उठाई है तो क्या मेहरबानी करके इसका बन्दोबस्त भी कर सकोगे कि निर्दोपी बन कर लोगों को अपना मुंह दिखाऊँ और कुंअर साहब का खूनी गिरफ्तार हो जाय ? क्योंकि यहाँ से निकल भागने पर लोगों को मुझ पर और भी सन्देह होगा बल्कि विश्वास हो जाएगा कि जरूर मैंने ही कुँअर साहब को मारा है ।

आदमी : तुम हर तरह से निश्चिन्त रहो, इन सब बातों को मैं अच्छी तरह सोच चुका हूँ बल्कि मैं कह सकता हूँ कि तुम तारा के लिए भी किसी तरह की चिन्ता मत करो ।

बीर० : (चौंककर) क्या तुम मेरे लिए ईश्वर होकर आए हो ! इस समय