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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/२५

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तुम्हारी बातें मुझे हद्द से ज्यादा खुश कर रही हैं !

आदमी : बस इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं कहा चाहता और हुक्म देता हूँ कि तुम उठो और मेरे पीछे-पीछे आओ ।

बीरसिंह उठा और उस आदमी के साथ-साथ सुरंग की राह तहखाने के बाहर हो गया । अब मालूम हुआ कि कैदखाने की दीवारों के नीचे-नीचे से यह सुरंग खोदी गई थी ।

बाहर आने के बाद बीरसिंह ने सुरंग के मुहाने पर चार आदमी और मुस्तैद पाये जो उस लम्बे आदमी के साथी थे । ये छः आदमी वहाँ से रवाना हुए और ठीक घण्टे-भर चलने के बाद एक छोटी नदी के किनारे पहुंचे । वहाँ एक छोटी- सी डोंगी मौजूद थी जिस पर आठ आदमी हल्की-हल्की डांड लिए मुस्तैद थे । अपने साथी के कहे मुताबिक बीरसिंह उस किश्ती पर सवार हुए और किश्ती बहाव की तरफ छोड़ दी गई । अब बीरसिंह को मौका मिला कि अपने साथियों की ओर ध्यान दे और उनकी आकृति को देखे । लाँबे कद के आदमी ने अपने चेहरे से नकाब हटाई और कहा, "बीरसिंह ! देखो और मेरी सूरत हमेशा के लिए पहिचान लो !"

बीरसिंह ने उसकी सूरत पर ध्यान दिया । रात बहुत थोड़ी बाकी थी तथा चन्द्रमा भी निकल आया था इसलिए बीरसिंह को उसको पहिचानने और उसके अंगों पर ध्यान देने का पूरा-पूरा मौका मिला ।

उस आदमी की उम्र लगभग पैंतीस वर्ष की होगी । उसका रंग गोरा, बदन साफ सुडौल और गठीला था, चेहरा कुछ लांबा, सिर के बाल बहुत छोटे और घुँघराले थे । ललाट चौड़ा, भौंहें काली और बारीक थीं, आँखें बड़ी-बड़ी और नाक लाँबी, मूँछ के बाल नर्म मगर ऊपर की तरफ चढ़े हुए थे । उसके दाँतों की पंक्ति भी दुरुस्त थी, उसके दोनों होंठ नर्म मगर नीचे का कुछ मोटा था । उसकी गरदन सुराहीदार और छाती चौड़ी थी । बाँह लम्बी और कलाई मजबूत थी तथा बाजू और पिण्डलियों की तरफ ध्यान देने से बदन कसरती मालूम होता था । हर बातों पर गौर करके हम कह सकते हैं कि वह एक खूबसूरत और बहादुर आदमी था । बीरसिंह को उसकी सूरत दिल से भाई, शायद इस सबब से कि वह बहुत ही खूबसूरत और बहादुर था बल्कि अवस्था के अनुसार कह सकते हैं कि बीरसिंह की बनिस्बत उसकी खूबसूरती बढ़ी-चढ़ी थी, मगर देखा