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पृष्ठ:कटोरा भर खून.djvu/४८

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बड़ी सुर्ख आँखें कहे देती थीं कि ये सब तलवार के जौहर के साथ अपना नाम रोशन करने वाले बहादुर हैं। ये लोग रेशमी चुस्त मिरजई पहिरे, सर पर लाल पगड़ी बाँधे, रक्त-चन्दन का त्रिपुण्ड लगाए, दोपट्टी आमने-सामने वीरासन पर बैठे बातें कर रहे थे। ऊपर की तरफ बीच में एक कम-उम्र बहादुर नौजवान बड़े ठाठ के साथ जड़ाऊ कब्जे की तलवार सामने रक्खे बैठा हुआ था। उसकी बेशकीमत गुछली टकी हुई सुर्ख मखमल की चुस्त पोशाक साफ-साफ कह रही थी कि वह किसी ऊंचे दरजे का आदमी बल्कि किसी फौज का अफसर है, मगर साथ ही इसके उसकी चिपटी नाक रहे-सहे भ्रम को दूर करके निश्चय करा देती थी कि वह नेपाल का रहने वाला है बल्कि यों कहना चाहिए कि वह नेपाल का सेनापति या किसी छोटी फौज का अफसर है। चार आदमी बड़े-बड़े पंखे लिए इन सभों को हवा कर रहे हैं।

यह नकाबपोश उस फर्श के पास जाकर खड़ा हो गया और तब वीरों को एक दफे झुक कर सलाम करने के बाद बोला, "आज मैं सच्चे दिल से महाराजा नेपाल को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने हम लोगों का अर्थात् हरिपुर की रिआया का दुःख दूर करने के लिए अपने एक सरदार को यहाँ भेजा है। मैं उस सरदार को भी इस कुमेटी में मौजूद देखता हूँ जिसमें यहाँ के बड़े क्षत्री जमींदार, वीर और धर्मात्मा लोग बैठे हैं। अस्तु, प्रणाम करने बाद (सर झुका कर) निवेदन करता हूँ कि वे उन जुल्मों की अच्छी तरह जाँच करें जो राजा करनसिंह की तरफ से हम लोगों पर हो रहे हैं। हम लोग इसका सबूत देने के लिए तैयार हैं कि यहाँ का राजा करनसिंह बड़ा ही जालिम, संगदिल और बेईमान है!!"

उस नकाबपोश की बात सुन कर नेपाल के सरदार ने, जिसका नाम खड़गसिंह था, एक क्षत्री वीर की तरफ देख कर पूछा-

खड़ग॰: अनिरुद्धसिंह, यह कौन है?

अनिरुद्ध॰: (हाथ जोड़ कर) यह उस नाहरसिंह का कोई साथी है जिसे यहाँ के राजा ने डाकू के नाम से मशहूर कर रक्खा है। अकसर हम लोगों की पंचायत में यह शरीक हुआ करता है। इसका नाम सोमनाथ है।

खड़ग॰: मगर क्या तुम उस नाहरसिंह डाकू के साथी को अपना शरीक बनाते हो जिसने हरिपुर को रिआया को तंग कर रक्खा है और जिसकी दबंगता और जुल्म की कहानी नेपाल तक मशहूर हो रही है?