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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/१०३

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अमर ने ठंडी साँस खींचकर कहा--इस खयाल से मुझे तस्कीन न होगी सकीना! वह चिराग़ हवा के झोंके से बुझ जायगा और वहाँ दूसरा चिराग़ रोशन होगा। फिर तुम मुझे कब याद करोगी। यह मैं नहीं देख सकता। तुम इस खयाल को दिल से निकाल डालो कि मैं कोई बहुत बड़ा आदमी हूँ और तुम बिलकुल नाचीज हो। मैं अपना सब कुछ तुम्हारे क़दमों पर निसार कर चुका और अब मैं तुम्हारे पुजारी के सिवा और कुछ नहीं। बेशक सुखदा तुमसे ज्यादा हसीन है; लेकिन तुममें कुछ बात तो है, जिसने मुझे उधर से हटाकर तुम्हारे क़दमों पर गिरा दिया। तुम किसी गैर की हो जाओ, यह मैं नहीं सह सकता। जिस दिन यह नौबत आयेगी, तुम सुन लोगी, कि अमर इस दुनिया में नहीं है। अगर तुम्हें मेरी वफ़ा के सबूत की जरूरत हो, तो उसके लिए खून की यह बूँदें हाज़िर हैं।

यह कहते हुए उसने जेब से छुरी निकाल ली। सकीना ने झपटकर छुरी उसके हाथ से छीन ली और मीठी झिड़की के साथ बोली--सबूत की ज़रूरत उन्हें होती है, जिन्हें यक़ीन न हो, जो कुछ बदले में चाहते हों। मैं तो सिर्फ तुम्हारी पूजा करना चाहती हूँ। देवता मुँह से कुछ नहीं बोलता, तो क्या, पुजारी के दिल में उसकी भक्ति कुछ कम होती है? मुहब्बत खुद अपना इनाम है। नहीं जानती ज़िन्दगी किस तरफ जायगी, लेकिन जो कुछ भी हो, जिस्म चाहे किसी का हो जाय, यह दिल हमेशा तुम्हारा रहेगा। इस मुहब्बत को ग़रज से पाक रखना चाहती हूँ। सिर्फ यह यक़ीन कि मैं तुम्हारी हूँ, मेरे लिए काफी है। मैं तुमसे सच कहती हूँ, प्यारे, इस यक़ीन ने मेरे दिल को इतना मज़बूत कर दिया है, कि वह बड़ी-से-बड़ी मुसीबत भी हँसकर झेल सकता है। मैंने तुम्हें यहाँ आने से रोका था। तुम्हारी बदनामी के सिवा, मुझे अपनी बदनामी का भी खौफ़ था; पर अब मुझे जरा भी खौफ़ नहीं है। मैं अपनी ही तरफ़ से बेफ़िक्र नहीं हूँ, तुम्हारी तरफ से भी बेफ़िक्र हूँ। मेरी जान रहते कोई तुम्हारा बाल भी बाँका नहीं कर सकता।

अमर की इच्छा हुई कि सकीना को गले लगाकर प्रेम से छक जाय, पर सकीना के ऊँचे प्रेमादर्श ने उसे शान्त कर दिया। बोला--लेकिन तुम्हारी शादी तो होने जा रही है।

'मैं अब इन्कार कर दूँगी!'

कर्मभूमि
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