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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/३१६

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आने तक रुपये में चार आने छूट की घोषणा कर दी थी और कारिन्दे बकाया वसूल करने की फिर चेष्टा करने लगे थे। दो-चार असामियों के साथ उन्होंने सख्ती भी की थी। इस नयी समस्या पर विचार करने के लिए आज गंगा-तट पर एक विराट् सभा हो रही थी। भोला चौधरी सभापति बनाये गये थे और स्वामी आत्मानन्द का भाषण हो रहा था--सज्जनो, तुम लोगों में ऐसे बहुत कम हैं, जिन्होंने आधा लगान न दे दिया हो। अभी तक तो आधे की चिन्ता थी। अब केवल आधे-के-आधे की चिन्ता है। तुम लोग खुशी से दो-दो आने और दे दो, सरकार महन्तजी की मालगुजारी में कुछ-न-कुछ छूट अवश्य करेगी। अब की छ: आने छूट पर सन्तुष्ट हो जाना चाहिये। आगे की फ़सल में अगर अनाज का यही भाव रहा, तो हमें आशा है कि आठ आने की छूट मिल जायगी। यह मेरा प्रस्ताव है, आप लोग इस पर विचार करें। मेरे मित्र अमरकान्तजी की भी यही राय है। अगर आप लोग कोई और प्रस्ताव करना चाहते हैं तो हम उस पर विचार करने को भी तैयार हैं।

इसी वक्त डाकिये ने सभा में आकर अमरकान्त के हाथ में एक लिफ़ाफ़ा रख दिया। पते की लिखावट ने बता दिया कि नैना का पत्र है। पढ़ते ही जैसे उस पर नशा छा गया। मुद्रा पर ऐसा तेज आ गया, जैसे अग्नि में आहुति पड़ गयी हो। गर्व भरी आँखों से इधर-उधर देखा। मन के भाव जैसे छलांगें मारने लगे। सुखदा की गिरफ्तारी और जेल यात्रा का वृत्तान्त था। अहा! वह जेल गयी और वह यहाँ पड़ा हुआ है। उसे बाहर रहने का क्या अधिकार है। वह कोमलांगी जेल में है, जो कड़ी दृष्टि भी न सह सकती थी, जिसे रेशमी वस्त्र भी चुभते थे, मखमली गद्दे भी गड़ते थे, वह आज जेल की यातना सह रही है? वह आदर्श नारी, वह देश की लाज रखनेवाली, वह कुल-लक्ष्मी आज जेल में है। अमर के हृदय का सारा रक्त सुखदा के चरणों पर गिरकर बह जाने के लिये मचल उठा। सुखदा! सुखदा! चारों ओर वही मूर्ति थी। सन्ध्या की लालिमा से रंजित गंगा की लहरों पर बैठी हुई कौन चली जा रही है? सुखदा! सामने की श्याम पर्वतमाला में गोधूलि का हार गले में डाले कौन खड़ी है? सुखदा! अमर विक्षिप्तों की भाँति कई कदम आगे दौड़ा, मानों उसको पद-रज मस्तक पर लगा लेना चाहता हो।

सभा में कौन क्या बोला इसकी ख़बर नहीं। वह खुद क्या बोला, इसकी

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कर्मभूमि