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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/३५०

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गयी होती तो कुछ अपना सुधार करता। अब क्या करूँगा। बाप सन्तान का गुरु होता है। उसी के पीछे लड़के चलते हैं। मुझे अपने लड़कों के पीछे चलना पड़ा। मैं धर्म की असलियत को न समझकर धर्म के स्वाँग को धर्म समझे हुए था। यही मेरी ज़िन्दगी की सबसे बड़ी भूल थी। मुझे तो ऐसा मालूम होता है कि दुनिया का कैंडा ही बिगड़ा हुआ है। जब तक हमें जायदाद पैदा करने की धुन रहेगी, हम धर्म से कोसों दूर रहेंगे। ईश्वर ने संसार को क्यों इस ढंग पर लगाया, यह मेरी समझ में नहीं आता। दुनिया को जायदाद के मोह-बन्धन से छुड़ाना पड़ेगा, तभी आदमी आदमी होगा, तभी दुनिया से पाप का नाश होगा।

सलीम ऐसी ऊँची बातों में न पड़ना चाहता था। उसने सोचा---जब मैं भी इनकी तरह ज़िन्दगी के सुख भोग लूँगा, तो मरते समय फ़िलासफर बन जाऊँगा। दोनों कई मिनट तक चुपचाप बैठे रहे। फिर लालाजी स्नेह से भरे स्वर में बोले--नौकर हो जाने पर आदमी को मालिक का हुक्म मानना ही पड़ता है। इसकी मैं बुराई नहीं करता। हाँ, एक बात कहूँगा! जिन पर तुमने जुल्म किया है, चलकर उनके आँसू पोंछ दो। यह गरीब आदमी थोड़ी-सी भलमनसी से काबू में आ जाते हैं। सरकार की नीति तो तुम नहीं बदल सकते; लेकिन इतना तो कर सकते हो कि किसी पर बेजा सख्ती न करो।

सुलीम ने शर्माते हुए कहा---लोगों की गुस्ताखी पर गुस्सा आ जाता है; वरना में तो खुद नहीं चाहता कि किसी पर सख़्ती करूँ। फिर सिर पर कितनी बड़ी जिम्मेदारी है। लगान न वसूल हुआ, तो मैं कितना नालायक समझा जाऊँगा।

समरकान्त ने तेज होकर कहा--तो बेटा, लगान तो न वसूल होगा, हाँ, आदमियों के खून से हाथ रंग सकते हो।

'यही तो देखना है।'

'देख लेना। मैंने भी इसी दुनिया में बाल सफेद किये हैं। हमारे किसान अफसरों की सूरत से काँपते थे; लेकिन जमाना बदल रहा है। अब उन्हें भी मान-अपमान का ख़याल होता है। तुम मुफ्त में बदनामी उठा रहे हो।'

'अपना फ़र्ज अदा करना बदनामी है, तो मुझे उसकी परवा नहीं।'

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कर्मभूमी