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पृष्ठ:कर्मभूमि.pdf/७०

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इतनी रात गये क्यों आये; लेकिन हूपर ने सहर्ष उसका स्वागत किया और मोटर लाने की आज्ञा देकर उससे बातें करने लगी।

'यह पहला ही बच्चा है ?'

'जी हाँ।

'आप रोयें नहीं। घबड़ाने की कोई बात नहीं। पहली बार ज्यादा दर्द होता है। और बहुत दुर्बल तो नहीं हैं ?'

'आज-कल तो बहुत दुबली हो गयी है।'

'आप को और पहले आना चाहिए था।'

अमर के प्राण सूख गये। वह क्या जानता था, आज ही यह आफ़त आने वाली है, नहीं कचहरी से सीधे घर आता।

मेम साहब ने फिर कहा--आप लोग अपनी लेडियों को कोई एक्सरसाइज नहीं करवाते। इसलिये दर्द ज्यादा होता है। अन्दर के स्नायु बँधे रह जाते हैं न !

अमरकान्त ने सिसककर कहा--मैडम, अब तो आप ही की दया का भरोसा है।

'मैं तो चल ही रही हूँ; लेकिन शायद सिविल सर्जन को बुलाना पड़े।"

अमर ने भयातुर हो कर कहा--कहिये तो उनको भी लेता चलूँ ?

मेम ने उसकी ओर दयाभाव से देखा--नहीं, अभी नहीं। पहले मुझे चलकर देख लेन दो।

अमरकान्त को आश्वासन न हुआ। उसने भय-कातर स्वर में कहा--मैडम, अगर सुखदा को कुछ हो गया, तो मैं भी मर जाऊँगा।

मेम ने चिन्तित होकर पूछा--तो क्या हालत अच्छी नहीं है ?

'दर्द बहुत हो रहा है।'

'हालत तो अच्छा है।'

'चेहरा पीला पड़ गया है , पसीना ...'

'हम पूछते हैं हालत कैसी है ? उनका जी तो नहीं डूब रहा है ? हाथ-पाँव तो ठण्डे नहीं हो गये हैं ?'

मोटर तैयार हो गयी। मेम साहब ने कहा--तुम भी आकर बैठ जाओ। साइकिल हमारा आदमी दे आयेगा।

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कर्मभूमि