पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१०६

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रैदास जङ्गल जाय जोगी धुनिया रमौल ५१ काम जराय जोगी बनि गेलें हिजरा ॥ मथवा मुड़ाय जोगी कपड़ा रंगोल गीता बाँचि के होइ गैले लवरा ॥ कहत कबीर सुनो भाई साधो जम दरवजयाँ बाँधल जैवे पकरा ॥११०॥ रमैया की दुलहिन लूटा बजार । सुरपुर लूट नागपुर लूटा तीन लोक मच हाहाकार | ब्रह्मा लूटे महादेव लूटे नारद मुनि के परी पिछारे ॥ त्रिगी की मिंगो करि डारी पारासर के उदर बिदार | कनफू का चिरकाली लूटे लूटे जोगेसर करत विचार ॥ हम तो बचिगे साहब दया से शब्द डोर गहि उतरे पार । कहत कबीर सुनो भाई साधो इस ठगनी से रहो हुलियार१६१॥ रैदास दासजी कबीर साहब के समय में हुए थे । ये जाति के चमार थे। इनके पिता का नाम धू और माता का नाम घुरबिनिया था । इनका जन्म काशी में हुआ था । ये भी महात्मा रामानन्द के शिष्यों में थे । रैदासजी और कबीर साहब में बहुत बादविवाद हुआ करता था । रैदास जी जब कुछ सयाने हुये तब भक्तों और