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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/१०७

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५२ कविता-कौमुदी साधुओं की सेवा में अधिक रहने लगे। जो कुछ कमाते सब साधु सन्तों को खिला पिला दिया करते थे । यह बात इनके पिता रघु को अच्छी नहीं लगी। उसने स्त्री सहित रैदास जी को घर से अलग कर दिया। खर्च के लिये वह इनको एक कौड़ी भी नहीं देता था। रैदास जी जूता बनाकर किसो तरह अपना गुजर करते और शतदिन भगवत्-चर्चा में मन रहा करते थे । ये मांस मदिरा को छूते तक न थे । | इनके विषय में बहुत सी करामात की कहानियाँ लोगों में प्रसिद्ध हैं। गुजरात प्रांत में इनके मत के मानने वाले लाखों आदमी हैं ओ अपने को रविदासी कहते हैं । ये मीरा बाई के गुरु थे । इनकी कविता से इनकी बड़ी भक्ति प्रकट होती है। रैदास जी के बनाये हुये कुछ दोहे और पद हम यहाँ उद्धृत करते हैं— १ हरि सा हीरा छाँड़ि के करें आन की आस । ते नर जमपुर जाहिंगे सत २ भाषे रैदास ॥ रैदास राति न सेाइये दिवस न करिये अहनिसि हरिजी सुमिरिये छाड़ि सकल स्वाद । प्रतिवाद || ३ भगती ऐसी सुनहु रे भाई । आइ भगति तब गई बड़ाई ॥ कहा भयो नाचे अरु गाये कहा भयो तप कीन्हें । कहा भयो जे वरन पखारे जोलौं तत्त्व न चीन्हे ॥ कहा भयो जे मूँड़ मुड़ायो कहा तीर्थ व्रत कीन्हे। खाली दास भगत अरु सेवक परम तत्त्व नहि चीन्हे ॥