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पृष्ठ:कविता-कौमुदी 1.pdf/८५

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३० कबीर साहब की कविता में बड़ी शिक्षा भरी है। एक एक पद से उनको सत्य-निष्ठा प्रकट होती है। उन्होंने जो कहा है, प्रायः सभी एक से एक बढ़ कुछ साखी और भजन चुन लिये कर है । हम ने उन्हीं में हैं। हमें कबीर साहब की साखो में बड़ा आनन्द मिलता है । बातें तो छोटी सी है, परन्तु उनमें अगाध ज्ञान भरा हुआ है । हम यहाँ कबीर साहब की कुछ साखियाँ और भजन उद्धृत करते हैं :- साखी साथ । गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाँय । बलिहारी गुरु आपने जिन गोविंद दिया बताय ||१|| यह तन वित्र की बेलरी गुरु अमृत की खान । सीस दिये जो गुरु मिलें तौ भी सस्ता जान ॥ २ ॥ वह बहाये जात थे लोक वेद के पैड़ा में सत गुरु मिले दीपक दीन्हा हाथ ऐसा कोई ना मिला सत्त नाम का तन मन सौंपे मिरग ज्यौं सुन वधिक का गीत सतगुरु साचा सुरमा नख सिख मारा दीसई भीतर चकनाचूर बाहर घाव न ॥ ॥ ३ ॥ मीत । ४ ॥ पूर । ॥ ५ ॥ सुख के माथे सिलि परै ( जो ) नाम हृदय से जाय । बलिहारी वा दुक्ख की पल पल नाम रटाय ।। ६ ।। लेने को सतमान हैं देने को अन दान । तरने को आधीनता वूडन को अभिमान ॥ ७ ॥ दुख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय । जो सुख में सुमिरन करें तो दुख काहे होय ॥ ८ ॥