सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/३९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३०
दसवां
 
दसवां परिच्छेद
प्रेमयोगिनी

"प्रियस्य दुःखमाकर्ण्य दुःखिनी भवति प्रिया।
सुखिनी सुखमालोक्य प्रेम्णो हि गतिरीदृशी ॥"

(भामिनी-भूषणे)

रात के दस बजे होंगे, उस समय कुसुमकुमारी अपनेकमरे में बैठी हुई अपने प्यारे की बाट जोह रही थी। जिस दिन से उसकी बसत से प्रीति हुई थी, उस दिन से आज ही ऐसा हुआ था कि बसंतकुमार रात के दस बजे तक भी उसके पास नहीं आया था। ऐसा कभी नहीं हुआ था, इसलिये कुसुम उसके लिये बहुत सोच कर रही थी। केवल इतना ही उसके सोच का कारण न था, बरन उसकी उदासी इस लिये भी थी कि बसंतकुमार अपने डेरे पर भी न था। कुसुम ने उसे बहुत खोजवाया, पर जब कहीं भी उसका पता न लगा तो वह लंबी सांस लेकर गद्दी पर लेट आंसू बहाने लगी। थोड़ी देर के बाद उसने अपने कई आदमियों को दुबारा वसंत को खोजने के लिये चारों ओर दौड़ाया था और आप दर्वाजे के सामने कुर्सी बिछाकर बैठी हुई उसके आने की राह तकने लगी थी। योंही होते-होते आधोरात को बारह बजने के समय, उसका एक प्यादा घबराया हुआ आकर उसके सामने हाथ जोड़कर खड़ा होगया। उसकी वैसी हालत देखकर कुसुम बहुत ही घबराई और बोल उठी,-" क्या खबर है ? भैरोंसिंह !" उस प्यादे का नाम भैरोंसिंह था: सो उसने दबी जुबान कहा,―"हुजूर! अगर आप घबराएं नहीं, तो ताबेदार सरकार (१) के बारे में कुछ अर्ज करे।"


(१) यह इशारा के लिये था