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पृष्ठ:कुसुमकुमारी.djvu/४०

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परिच्छेद]
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कुसुमकुमारी


कुसुम इतना सुनते ही दोनों हाथों से अपने कलेजे को भर-जोर देशावजी के साथ कुर्सी से उठ-खड़ी-हुई और बोली,-" तुम्हें जो कुछ कहना हो, उसे साफ़ साफ़ और बहुत जल्द कहो, क्योंकि इस वक्त मैं सब कुछ सुनने और सहने के लिए तयार हूं।" भैरोंसिह,-" तो, सुनिए,-आपका हुक्म पाकर मैं सरकार को खोजता हुआ बाबा सिद्धनाथ(१)की ओर गया, क्योंकि मुझे यह यात मालूम थी कि वे रोज़ शाम के वक्त वहाँ दर्शन करने जाया करते और वहांसे लौटकर यहां तशरीफ़ लाते थे।" कुसुम, (घबराई हुई)"भई, भैरोंसिंह ! तुम्हें जो कुछ कहना हो, उसे बहुत जल्द कहो, क्यों कि मेरा कलेजा इस वक्त बैठा जा रहा है।" भैरोंसिंह,-"हुजूर, ज़रा सब्र करें और सुनें, हां, तो फिर मैं उसी ओर गया और ज्यों ही मंदिर के पास पहुंचा कि उसके पासवाली एक घनी आम की बारी से कई आदमियों को निकलकर तेजी के साथ एक तरफ भागते मैंने देखा । यह ग़नीमत हुई कि उनमें से मैंने दो आदमियो को चांदनी के हलके उजाले में पहि- चान लिया।" कुसुम,—(कुर्सी पर बेबसी की हालत में बैठकर)" मगर, तुम अपना किस्सा जल्द पूरा करो!" भैरोंसिंह,-"लेकिन आप अपनी घबराहट को बराबर बढ़ाकर मेरी ज़बान को बोलने से खद रोक रही हैं। इसलिये अब आप जरा सब्र को अखत्यार करें, तो मैं आगे कुछ अर्ज करूं।" कुसुम,-(कुर्सी पर हाथ पटककर) “ हाय, जल्द कहो!" भेरोसिह,-"वे सब कंबख्त ऐसी घबराहट और तेजी से भाग जाते थे कि उनमें से किसीने पास तक पहुंच जाने पर भी मुझे न देखा। निदान, उन नालायकों के भागने पर मैं सिद्धनाथ-बाबा की प्रेरणा से उस झाड़ी में घुसकर क्या देखता हूं कि-.--" इतना सुनते ही कुसुम घबराकर तेजी के साथ उठ खड़ी हुई और बोली,-" हां! हां! मैं मरने के लिये तैयार हूं, इसलिये तुम बेखौफ होकर अपनी बात पूरी करो ! जल्द, जल्द, जल्द; बहुत (१) ये मारे के देवताओं में 'और प्राचीन शिवलिङ्ग हैं।