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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/२३

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इज्जत का खून
२७
 

उसके मकान पर कत्ल किया और तब अपने घर आकर अपने सीने मे गोली मारी। इस मर्दाना गैरतमन्दी ने सईद की महब्बत मेरे दिल में ताजा कर दी।

शाम के वक्त मैं अपने मकान पर पहुँच गयी। अभी मुझे यहाँ से गये हुए सिर्फ चार दिन गुजरे थे मगर ऐसा मालूम होता था कि वर्षों के बाद आयी हूँ। दरोदीवार पर हसरत छायी हुई थी। मैंने घर में पाँव रक्खा तो बरबस सईद की मुस्कराती हुई सूरत आँखों के सामने आकर खड़ी हो गयी—वही मर्दाना हुस्न, वही बाँकपन, वही मनुहार की आँखे। बेअख्तियार मेरी आँखे भर आयीं और दिल से एक ठण्डी आह निकल आयी। गम इसका न था कि सईद ने क्यो जान दे दी। नहीं, उसकी वह मुजरिमाना बेहिसी और रूप के पीछे भागना इन दोनो बातो को मै मरते दम तक माफ़ न करूंगी। गम यह था कि यह पागलपन उसके सर मे क्यों समाया? इस वक्त दिल की जो कैफियत है उससे मैं समझती हूँ कि कुछ दिनो मे सईद की बेवफाई और बेरहमी का घाव भर जायेगा, अपनी जिल्लत की याद भी शायद मिट जाय, मगर उसकी चन्दरोजा मुहब्बत का नक्श बाकी रहेगा और अब यही मेरी जिन्दगी का सहारा है।

—उर्दू 'प्रेम पचीसी' से