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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/५८

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गुप्त धन
 


रात भर मेरा जी उसी तरफ़ लगा रहा। एकदम लड़के मैं फिर उस गली में जा पहुँचा। मालूम हुआ वह एक अनाथ विधवा है।

मैंने दरवाजे पर जाकर पुकारा--देवी, मै तुम्हारे दर्शन करने आया हूँ।

औरत बाहर निकल आयी--गरीबी और बेकसी की ज़िन्दा तस्वीर। मैंने हिचकते हुए कहा--रात आपने फकीर को......

देवी ने बात काटते हुए कहा--अजी वह क्या बात थी, मुझे वह नोट पड़ा मिल गया था, मेरे किस काम का था।

मैंने उस देवी के क़दमो पर सिर झुका दिया।

—'प्रेमचालीसी' से