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पृष्ठ:गुप्त-धन 2.pdf/५९

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खुदी


मुन्नी जिस वक्त़ दिलदारनगर मे आयी, उसकी उम्र पाँच साल से ज्यादा न थी। वह बिलकुल अकेली थी, माँ-बाप दोनो न मालूम मर गये या कही परदेस चले गये थे। मुन्नी सिर्फ इतना जानती थी कि कभी एक देवी उसे खिलाया करती थी और एक देवता उसे कंधे पर लेकर खेतों की सैर कराया करता था। पर वह इन बातो का जिक्र कुछ इस तरह करती थी कि जैसे उसने सपना देखा हो। सपना था या सच्ची घटना, इसका उसे ज्ञान न था। जब कोई पूछता तेरे माँ-बाप कहाँ गये? तो वह बेचारी कोई जवाब देने के बजाय रोने लगती और यों ही उन सवालो को टालने के लिए एक तरफ हाथ उठाकर कहती--ऊपर। कभी आसमान की तरफ़ देखकर कहती--वहाॅ। इस ऊपर और वहाॅ से उसका क्या मतलब था यह किसी को मालूम न होता। शायद मुन्नी को यह खुद भी मालूम न था। बस एक दिन लोगों ने उसे एक पेड़ के नीचे खेलते देखा और इससे ज्य़ादा उसकी बाबत किसी को कुछ पता न था ।

लड़की की सूरत बहुत प्यारी थी। जो उसे देखता, मोह जाता। उसे खाने-पीने की कुछ फ़िक्र न रहती थी। जो कोई बुलाकर कुछ दे देता, वही खा लेती और फिर खेलने लगती। शक्ल-सूरत से यह किसी अच्छे घर की लड़की मालूम होती थी। ग़रीब से ग़रीब घर में भी उसके खाने को दो कौर और सोने को एक टाट के टुकड़े की कमी न थी। वह सबकी थी, उसका कोई न था।

इस तरह कुछ दिन बीत गये। मुन्नी अब कुछ काम करने के क़ाबिल हो गयी। कोई कहता, ज़रा जाकर तालाब से यह कपड़े तो धो ला। मुन्नी बिना कुछ कहे-सुने कपड़े लेकर चली जाती। लेकिन रास्ते में कोई बुलाकर कहता, बेटी कुएँ से दो घड़े पानी तो खीच ला, तो वह कपड़े वही रखकर घड़े लेकर कुएँ की तरफ़ चल देती। कुएँ पर कोई कह देता, ज़रा खेत से जाकर थोड़ा साग तो ले आ और मुन्नी घड़े वही रखकर साग लेने चली जाती। पानी के इन्तजार मे बैठी हुई औरत उसकी राह देखते-देखते थक जाती। कुएँ पर जाकर देखती है तो घड़े रखे हुए है। वह मुन्नी को गालियाॅ देती हुई कहती, आज से इस कलमुँही