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पृष्ठ:गोदान.pdf/३४५

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मंगलसूत्र : 345
 

केवल एक ही ऐसा आक्षेप है जिस पर मैं उसे छोड़ सकता हूं, यानी उसकी बेवफाई। लेकिन पुष्पा में और चाहे जितने दोष हों यह दोष नहीं है।

संध्या हो गई थी। तिब्बी ने नौकर को बुलाकर बाग में गोल चबूतरे पर कुर्सियां रखने को कहा और बाहर निकल आई। नौकर ने कुर्सियां निकालकर रख दीं, और मानो यह काम समाप्त करके जाने को हुआ।

तिब्बी ने डांटकर कहा—कुर्सियां साफ क्यों नहीं की? देखता नहीं उन पर कितनी गर्द पड़ी हुई है? मैं तुझसे कितनी बार कह चुकी, मगर तुझे याद ही नहीं रहती। बिना जुर्माना किए तुझे याद न आयेगी।

नौकर ने कुर्सियां पोंछ-पोंछ कर साफ कर दीं और फिर जाने को हुआ।

तिब्बी ने फिर डांटा—तू बार-बार भागता क्यों है। मेजें रख दीं? टी-टेबल क्यों नहीं लाया? चाय क्या तेरे सिर पर पिएंगे?

उसने बूढ़े नौकर के दोनों कान गर्मा दिये और धक्का देकर बाली—बिल्कुल गाबदी है, निरा पोंगा, जैसे दिमाग में गोबर भरा हुआ है।

बूढ़ा नौकर बहुत दिनों का था। स्वामिनी उसे बहुत मानती थीं। उनके देहांत होने के बाद गोकि उसे कोई विशेष प्रलोभन न था, क्योंकि इससे एक-दो रुपया ज्यादा वेतन पर उसे नौकरी मिल सकती थी पर स्वामिनी के प्रति उसे जो श्रद्धा थी वह उसे इस घर से बांधे हुए थी और यहां अनादर और अपमान सब कुछ सहकर भी वह चिपटा हुआ था। सब—जज साहब भी उसे डांटते रहते थे पर उनके डांटने का उसे दुख न होता था। वह उम्र में उसके जोड़ के थे। लेकिन त्रिवेणी को तो उसने गोद खेलाया था। अब वही तिब्बी उसे डांटती थी, और मारती भी थी। इससे उसके शरीर को जितनी चोट लगती थी उससे कहीं ज्यादा उसके आत्माभिमान को लगती थी। उसने केवल दो घरों में नौकरी की थी। दोनों ही घरों में लड़कियां भी थीं बहुए भी थीं। सब उसका आदर करती थीं। बहुएं तो उससे लजाती थीं। अगर उससे कोई बात बिगड़ भी जाती तो मन में रख लेती थीं। उसकी स्वामिनी तो आदर्श महिला थी। उसे कभी कुछ न कहा। बाबू जी कभी कुछ कहते तो उसका पक्ष लेकर उनसे लड़ती थी। और यह लड़की बड़े-छोटे का जरा भी लिहाज नहीं करती। लोग कहते हैं पढ़ने से अक्ल आती है। यही है वह अक्ल। उसके मन में विद्रोह का भाव उठा—क्यों यह अपमान सहे? जो लड़की उसकी अपनी लड़की से भी छोटी हो, उसके हाथां क्यों अपनी मूंछें नुचवाये? अवस्था में भी अभिमान होता है जो संचित धन के अभिमान से कम नहीं होता। वह सम्मान और प्रतिष्ठा को अपना अधिकार समझता है, और उसकी जगह अपमान पाकर मर्माहत हो जाता है।

घूरे ने टी-टेबल लाकर रख दी, पर आंखों में विद्रोह भरे हुए था।

तिब्बी ने कहा—जाकर बैरा से कह दो, दो प्याले चाय दे जाय।

घूरे चला गया और बैरा को यह हुक्म सुनाकर अपनी एकांत कुटी में जाकर खूब रोया। आज स्वामिनी होती तो उसका अनादर क्यों होता!

बैरा ने चाय मेज पर रख दी। तिब्बी ने प्याली सन्तकुमार को दी और विनोद भाव से बोली—तो अब मालूम हुआ कि औरतें ही पतिव्रता नहीं होतीं, मर्द भी पत्नीव्रता वाले होते हैं।