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346: प्रेमचंद रचनावली-6
 


सन्तकुमार ने एक घूंट पीकर कहा—कम-से-कम इसका स्वांग तो करते ही हैं।

—मैं इसे नैतिक दुर्बलता कहती हूं। जिस प्यारा कहो दिल से प्यारा कहो, नहीं प्रकट हो जाय। मैं विवाह को प्रेमबंधन के रूप में देख सकती हूं, धर्मबंधन या रिवाज बंधन तो मेरे लिए असह्य हो जाय।

—उस पर भी तो पुरुषों पर आक्षेप किये जाते हैं।

तिब्बी चौंकी। यह जातिगत प्रश्न हुआ जा रहा है।

अब उसे अपनी जाति का पक्ष लेना पड़ेगा—तो क्या आप मुझसे यह मनवाना चाहते हैं कि सभी पुरुष देवता होते हैं? आप भी जो वफादारी कर रहे हैं वह दिल से नहीं, केवल लोकनिंदा के भय से। मैं इसे वफादारी नहीं कहती। बिच्छू के डंक तोड़कर आप उसे बिल्कुल निरीह बना सकते हैं, लेकिन इससे बिच्छुओं का जहरीलापन तो नहीं जाता।

सन्तकुमार ने अपनी हार मानते हुए कहा—अगर मैं भी यही कहूं कि अधिकतर नारियां का पातिव्रत भी लोकनिंदा का भय है तो आप क्या कहेंगी?

तिब्बी ने प्याला मेज पर रखते हुए कहा—मैं इसे कभी न स्वीकार करूंगी।

—क्यों?

—इसलिए कि मर्दो ने स्त्रियों के लिए और कोई आश्रय छोड़ा ही नहीं। पातिव्रत उनके अंदर इतना कूट-कूट कर भरा गया है कि अब अपना व्यक्तित्व रहा ही नहीं। वह केवल पुरुष के आधार पर जी सकती है। उसका स्वतंत्र कोई अस्तित्व ही नहीं। बिन ब्याहा पुरुष चैन म खाता है, विहार करता है और मूंछों पर ताव देता है। बिन ब्याही स्त्री रोती है, कलपती है और अपने को संसार का सबसे अभागा प्राणी समझती हैं। यह सारा मर्दो का अपराध है। आप भी पुष्पा को नहीं छोड़ रह हैं इसीलिए न कि आप पुरुष हैं जो कैदी को आजाद नहीं करना चाहता।

सन्तकुमार ने कातर स्वर में कहा—आप मेरे साथ बेइंसाफी करती हैं। मैं पुष्पा का इसलिए नहीं छोड़ रहा हूं कि मैं उसका जीवन नष्ट नहीं करना चाहता। अगर में आज उसे छोड़ दूँ तो शायद औरों के साथ आप भी मेरा तिरस्कार करेंगी।

तिब्बी मुस्कराई—मेरी तरफ से आप निश्चित रहिए। मगर एक ही क्षण के बाद उसने गंभीर होकर कहा—लकिन मैं आपकी कठिनाइयों का अनुमान कर सकती हूं।

—मुझे आपके मुंह से ये शब्द सुनकर कितना संतोष हुआ। में वास्तव में आपकी दया का पात्र हूं और शायद कभी मुझे इसकी जरूरत पड़े।

—आपके ऊपर मुझे सचमुच दया आती है। क्यों न एक दिन उनमें किसी तरह मेरी मुलाकात करा दीजिए। शायद मैं उन्हें रास्ते पर ला सकूं।

सन्तकुमार ने ऐसा लंबा मुंह बनाया जैसे इस प्रस्ताव से उनके मर्म पर चोट लगी है।

—उनका रास्ते पर आना असंभव है मिस त्रिवेणी! वह उलटे आप ही के ऊपर आक्षेप करेगी और आपके विषय में न जाने कैसी दुष्कल्पनाएं कर बैठेगी। और मेरा तो घर में रहना मुश्किल हो जायेगा।

तिब्बी का साहसिक मन गर्म हो उठा—तब तो मैं उससे जरूर मिलूंगी।

—तो शायद आप यहां भी मेरे लिए दरवाजा बंद कर देंगी।

—ऐसा क्यों?