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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/२१७

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रात पहर भर से ज्यादा जा चुकी है। काशी में मनोरमा के मकान के अन्दर फर्श पर नागर बैठी हुई और उसके पास ही एक खूबसूरत नौजवान आदमी छोटे-छोटे तीन-चार तकियों का सहारा लगाये अधलेटा-सा पड़ा जमीन की तरफ देखता हुआ कुछ सोच रहा है। इन तीनों के सिवाय कमरे में कोई तीसरा नहीं है।

नागर––मैं फिर भी तुम्हें कहती हूँ कि किशोरी का ध्यान छोड़ दो क्योंकि इस समय मौका समझ कर मायारानी ने उसे आराम के साथ रखने का हुक्म दिया है।

जवान––ठीक है मगर मैं उसे किसी तरह की तकलीफ तो नहीं देता फिर उसके पास मेरा जाना तुमने क्यों बन्द कर दिया?

नागर––बड़े अफसोस की बात है कि तुम मायारानी की तरफ कुछ भी ध्यान नहीं देते! जब भी तुम किशोरी के सामने जाते हो वह जान देने के लिए तैयार हो जाती है। तुम्हारे सबब से वह सूख कर काँटा हो गई है। मुझे निश्चय है कि दो-तीन दफे अगर तुम और उसके सामने आओगे तो वह जीती न बचेगी क्योंकि उसमें अब बात करने की भी ताकत नहीं रही, और उसका मरना मायारानी के हक में बहुत ही बुरा होगा। जब तक किशोरी को यह निश्चय न होगा कि तुम इस मकान से निकाल दिए गए तब तक वह मुझसे सीधी तरह बात भी न करेगी। ऐसी अवस्था में मायारानी की आज्ञानुसार मैं उसे कैद रखने की अवस्था में भी क्योंकर खुश रख सकती हूँ।

जवान––(कुछ चिढ़कर) यह बात तो तुम कई दफे कह चुकी हो फिर घड़ी-घड़ी क्यों कहती हो?

नागर––खैर न सही, सौ की सीधी एक ही कहे देती हूँ कि किशोरी के बारे में तुम्हारी मुराद पूरी न होगी और जहाँ तक जल्द हो सके तुम्हें मायारानी के पास चले जाना पड़ेगा।

जवान––यदि ऐसा ही है तो लाचार होकर मुझे मायारानी के साथ दुश्मनी करनी पड़ेगी। मैं उसके कई ऐसे भेद जानता हूँ कि उन्हें प्रकट करने में उसकी कुशल नहीं है।

नागर––अगर तुम्हारी यह नीयत है तो तुम अभी जहन्नुम में भेज दिये जाओगे।

जवान––तुम मेरा कुछ भी नहीं कर सकतीं, मैं तुम्हारी जहरीली अँगूठी से डरने वाला नहीं हूँ।

इतना कह कर नौजवान उठ खड़ा हुआ और कमरे के बाहर निकला ही चाहता था कि सामने का दरवाजा खुला और भूतनाथ आता हुआ दिखाई दिया। नागर ने जवान की तरफ इशारा करके भूतनाथ से कहा, "देखो, इस नालायक को मैं पहरों से समझा रही हूँ मगर कुछ भी नहीं सुनता और जान-बूझ कर मायारानी को मुसीबत में डालना चाहता है!" इसके जवाब में भूतनाथ ने कहा, "हाँ, मैं भी पिछले दरवाजे की