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पृष्ठ:चंद्रकांता संतति भाग 2.djvu/३५

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उसके दूसरे ही दिन राजा वीरेन्द्रसिंह को खबर मिली कि लाली का पता नहीं लगता। न मालूम वह किस तरह कैद से निकल कर भाग गई। उसका पता लगाने के लिए कई जासूस चारों तरफ रवाना किये गये।

अब महाराज दिग्विजयसिंह की नीयत खराब हो गई और वे इस बात पर उतारू हो गए कि राजा वीरेन्द्रसिंह, उनके लड़के और दोस्तों को गिरफ्तार कर लेन चाहिए, खाली गिरफ्तार नहीं, मार डालना चाहिए।

राजा वीरेन्द्रसिंह तहखाने में जाकर वहाँ का हाल देखना और जानना चाहते थे मगर दिग्विजयसिंह हीले-हवाले में दिन काटने लगा। आखिर यह निश्चय हुआ कि कल तहखाने में अवश्य चलना चाहिए। उसी दिन रात को दिग्विजयसिंह ने राजा वीरेन्द्रसिंह की फिर ज्याफत की और खाने की चीजों में बेहोशी की दवा मिलाने का हुक्म अपने ऐयार रामानन्द को दिया। बेचारे राजा वीरेन्द्रसिंह इन बातों से बिल्कुल बेखबर थे और उनके ऐयारों को भी ऐसी उम्मीद न थी, आखिर नतीजा यह हुआ कि रात को भोजन करने के बाद सभी पर दवा ने असर किया। उस समय तेजसिंह चौंके और समझ गये कि दिग्विजयसिंह ने दगा की, मगर अब क्या हो सकता था? थोड़ी देर बाद राजा वीरेन्द्रसिंह, कुँअर आनन्दसिंह, तेजसिंह, पण्डित बद्रीनाथ, ज्योतिषीजी और तारासिंह वगैरह बेहोश होकर जमीन पर लेट गये और बात-की-बात में हथकड़ियों और बेड़ियों से बेबस कर उसी तिलिस्मी तहखाने में कैद कर दिए गये। उस तहखाने से बाहर निकलने के लिए जो दो रास्ते थे, उनका हाल पाठक जान ही गये हैं क्योंकि ऊपर उसका बहुत-कुछ हाल लिखा जा चुका है। उन दोनों रास्तों में से एक रास्ता, जिससे हमारे ऐयार लोग और कुँअर आनन्दसिंह गये थे, बखूबी बन्द कर दिया गया। मगर दूसरा रास्ता, जिधर से कुन्दन (धनपति) किशोरी को लेकर निकल गई थी, ज्यों का त्यों रहा क्योंकि उसकी खबर राजा दिग्विजयसिंह को न थी। उस रास्ते का हाल वह कुछ भी न जानता था।

राजा वीरेन्द्रसिंह, उनके लड़के और साथी लोग जब कैदखाने में भेज दिये, उस समय राजा वीरेन्द्रसिंह के थोड़े से फौजी आदमी, जो उनके साथ किले में आ चुके थे, यह दगाबाजी देखकर जान देने के लिए तैयार हो गये। उन्होंने राजा दिग्विजयसिंह के बहुत से आदमियों को मार दिया और जब तक जीते रहे, मालिक के नमक का ध्यान उनके दिल में बना रहा। पर आखिर कहाँ तक लड़ सकते थे! अन्त में सब-के-सब बहादुरी के साथ लड़कर वैकुण्ठ चले गये। राजा दिग्विजयसिंह ने किले का फाटक बन्द करवा दिया, सफीलों पर तोपें चढ़वा दीं और राजा वीरेन्द्रसिंह के लश्कर से, जो पहाड़ के नीचे था, लड़ाई करने का हुक्म दे दिया। राजा वीरेन्द्रसिंह के लश्कर में दो सरदार मौजूद थे जो अभी तक रोहतासगढ़ में नहीं आये थे, एक नाहरसिंह और दूसरे फतहसिंह, ये दोनों सेनापति थे।

पाटक, देखिए, जमाने ने कैसा पलटा खाया! किशोरी की धुन में कुँअर इन्द्रजीतसिंह अपने दो ऐयारों के साथ ऐसी जगह जा फँसे कि उनका पता लगना भी मुश्किल है, इधर राजा वीरेन्द्रसिंह वगैरह की यह दशा हुई, अगर भैरोसिंह चिट्ठी लेकर चुनार