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पृष्ठ:जगद्विनोद.djvu/३४

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(३४) जगदिनोद । अथ मुग्धा कलहांतरिताका उदाहरण ॥ सवैया ॥ बारीबहू मुरझानी विलोकि जिठानीकरै उपचार किवा त्योपदमाकर ऊँची उसांसलखेमुखसासको लै रह्यो फीके एकैकहैं इन्हें डीठि गीपर भेद न कोऊ लहै दुलहीकं बैंकै अजानजोकान्हसों कीन्होंगुमानभयोवहै जा नहीं जीकं दोहा--प्रथम केलि तियकलहकी, कथा न कछु कहिजार अतनुताप तनहीमहैं, मनहींमन अकुलाय ॥ ७१ मध्या कलहांतरिता ॥ कवित्त--झालरन दार झूकि झूमति बितान बिछे, गहब गलीचा अरु गुलगुली गिलमें। जगरमगर पदमाकर सु दीपनकी, फैली जगा ज्योति केलि मंदिर अखिलमें। आवत तहाँई मनमोहनको लाज मैन, जसी कछू करी तैसी दिलही की दिलमें। होरि हरि बिलमें न लीन्हों हिलमिल में, रही हों हाइ मिलमें प्रभाकी झिल मिल में ॥७२ दोहा--ल्यावो पियहि मनाइयह, कह्योचहतिरहिजाति कलह कहरकी लहरमें, परी तिया पछिताति ॥७३ अथ प्रौढा कलहांतरिताका उदाहरण ।। कवित्त-ये अलि इकन्त पाइ पाइन परैहै आइ, हौं न तब होर या गुमान बजमारै सों।