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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२११

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पवित्रता

प्रतीत नहीं होता था परंतु जरा सी देर के बाद तारों की मध्यम मध्यम ज्योति चित्रकार के हाथ से झड़ी पड़ती है। ऊपर का आकाश, गहनों से लदी हुई दुलहन की तरह, इस एकांत में आ खड़ा है। इस चित्रकार की प्रशंसा करते करते मैं ठहर गया और कई घंटे ठहरा रहा। इस चित्रकार के ब्रुश से एक और भी अद्भुत चित्र साथ ही साथ देखा। ब्रुश का कोई ऐसा इशारा हुआ कि इस दूसरे चित्र में काली अँधेरी रात भागती प्रतीत होने लगी और कोई ऐसा विद्याकला का गोला चला कि कुल तारागण अपनी अपनी पालकियों में सवार हो बड़े जोर से भाग रहे हैं। मैं यह लीला देख ही रहा था कि अचानक रात थी ही नहीं और पर्वतों के पीछे से लाल लाल सूर्य निकल आया था। प्रातःकाल हो गया, गजर बज गए, फूल खिले, हवा चली। पक्षी अपने सितार ले मध्य आकाश में आशा अलापने लगे। पशु नीचे सिर किए हुए ओस से भरी हरी हरी घास को खाने लग गए। नदियाँ मानो एकदम अपने घरों से बह निकलीं । मैं और मेरी पत्नी साथ साथ जा रहे हैं और कभी इस शोभा को और कभी एक दूसरे को देखते हैं । पाठक ! उठो अब तो भोर हो गया ।

(५) कुछ एक सामग्री का ढेर लगा है । मनों ही पड़ी थी । अग्नि प्रज्वलित हुई । हवन कुड में से लंबी लंबी ज्वालाएँ निकलने लगीं । हम दोनों देख रहे हैं। ऐसी पवित्रता का उपदेश हमने किसी गिरजे-मंदिर में कभी नहीं सुना ।