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पृष्ठ:निबंध-रत्नावली.djvu/२१३

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पवित्रता

बढ़ता हूँ तो साँस घुटी जाती है। ऐसा न हो कि युधिष्ठिर राजाधिराज के भाइयों की तरह इस चित्र देखने का मूल्य मृत्यु ही हो ! मुझे अवश्य इस गुप्त शब्द को ढूँढ़ना है, ढूँढूँ तो मृत्यु हो जायगी, दुःख होगा। भला ऐसे चित्र को देखना और उसके दर्शन की शर्त को न बजा लाना ऐसा ही पाप है कि मृत्यु हो जाय !

ऊपर के आए हुए चित्र तो साधारण तौर पर कुछ कठिन भी हों। और यदि पवित्रता का स्वरूप न भी भान हो तो नीचे और चित्रों के दर्शन से मैंने कई एक को पवित्रता का अनुभव होते वास्तव में देखा है।

(८) एक टूटा-फूटा, कच्ची ईटों का, मकान है। दीवारें इसकी मिट्टी से लिपी हुई हैं। इसको छत घास के तिनकों से बनी है। किसी पक्षी का घोंसला नहीं। यह अच्छा बड़ा है। दरवाजा इसका बहुत छोटा है । जरा अपनी लंबाई को कम करके जाना पड़ेगा । सर झुकाकर अंदर घुसना पड़ेगा । इसके अंदर क्या प्रभुज्योति से चमकती हुई एक देवी बैठी है। उसने मुझे नहीं देखा और न आपको । बैठ जाइए, इसकी गोद में एक छः महीने का, चाँद से मुखवाला, बालक है जिसके सफेद सफेद कपोलों पर काले बाल लिपट रहे हैं। यह बच्चा दूध पीते पीते सोगया है। यह विद्या सुंदरता से भूषित सुदरी, इस अमूल्य बालक की माता .है। अपने अत्यंत प्रेम को दिल से बहा बहाकर आँखों द्वारा इस सोते बालक पर सफेद ज्योति की