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निबंध-रत्नावली

गोयति' भी है। कौन ब्राह्मण का बच्चा कह सकता है कि मैं इन गवैए ऋषियों को संतान नहीं हूँ ? कौन ब्राह्मण का बच्चा यह कहने का साहस कर सकता है कि ये ऋषि सामगान नहीं करते थे ? और संगीत से नाक चढ़ाकर कौन सा ब्राह्मण इन सात्विक गवैयों का अपमान नहीं कर रहा है ? तुम्बुरु का तम्बूरा ब्राह्मणों के वाद्य के संबंध का और राजषि भरतमुनि का नाट्यशास्त्र क्षत्रियों के वाद्यनृत्य के साथ निकट संबंध का सदा साक्षी रहेगा।

क्षत्रियों और वैश्यों के गोत्रकर्ता ऋषि वे ही हैं जो ब्राह्मणों के हैं। इस बात को छोड़ दीजिए। आजकल की क्षत्रिय जातियों के वंशधर अपने पापको प्रधानतः दो कुलों का बत- लाते हैं-सूर्यवंश का और चंद्रवंश का। सूर्यवंश की प्रत्येक वंशावली दशरथ के पुत्र रामचंद्र के पुत्र कुश और लव के साथ मिलाई जाती है और चंद्रवंश की वशावलियाँ भी देवकीपुत्र कृष्ण तक पहुँचाई जाती हैं। इन्हीं दोनों कुलों की बात सुन लीजिए।

चंद्रवंश की वंशपरंपराओं के आदि कमल वासुदेव कृष्ण को जो अपना पूर्वज मानते हैं वे किस मुंह से गाने बजाने की निंदा करते हैं ? कृष्णचंद्र ने न केवल स्वयं गीतागीत गाया प्रत्युत उसके कारण गाए हुए पंचगीत आज भी संस्कृत-साहित्य के प्रियतम रत्नों में से हैं। और उनकी वंशी बजाने की महिमा का तो कहना ही क्या ? मनुष्यों और देवताओं पर ही उसका व्यामो- हन नहीं चलता था बल्कि पशु, पक्षी, तरु, लता, नदी, पर्वत-सब