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पृष्ठ:निर्मला.djvu/२२१

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निर्मला
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शिकायत न सुनेंगे। आप पिता जी से मेरे अपराध क्षमा करा दीजिए। मैं सचमुच बड़ा अभागा हूँ। उन्हें मैंने बहुत सताया। उनसे कहिए -- मेरे अपराध क्षमा कर दें, नहीं मैं मुँह में कालिख लगा कर कहीं निकल जाऊँगा -- डूब मरूँगा!

डॉक्टर साहब अपनी उपदेश-कुशलता पर फूले न समाए। जियाराम को गले लगा कर बिदा किया!

जियाराम घर पहुँचा, तो ग्यारह बज गये थे। मुन्शी जी भोजन करके अभी बाहर आए थे। उसे देखते ही बोले -- जानते हो कै बजे हैं? बारह का वक्त़ है!

जियाराम ने बड़ी नम्रता से कहा -- डॉक्टर सिन्हा मिल गए। उनके साथ उनके घर तक चला गया। उन्होंने खाने के लिए ज़िद की; मजबूरन् खाना पड़ा। इसी से देर हो गई।

मुन्शी जी -- डॉक्टर सिन्हा से दुखड़े रोने गए होगे या और कोई काम था?

जियाराम की नम्रता का चौथा भाग उड़ गया; बोला -- दुखड़े रोने की मेरी आदत नहीं है।

मुन्शी जी -- ज़रा भी नहीं, तुम्हारे मुँह में तो ज़बान ही नहीं। मुझसे जो लोग तुम्हारी बातें कहा करते हैं, वह गढ़ा करते होंगे?

जियाराम -- और दिनों की मैं नहीं कहता; लेकिन आज डॉक्टर सिन्हा के यहाँ मैंने कोई बात ऐसी नहीं की, जो इस वक्त़ आपके सामने न कर सकूँ।