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पृष्ठ:निर्मला.djvu/२२२

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अठारहवाँ परिच्छेद
 

मुन्शी जी -- बड़ी ख़ुशी की बात है। बेहद ख़ुशी हुई! आज से गुरु-दीक्षा ले ली है क्या?

जियाराम की नम्रता का एक चतुर्थांश और गायब हो गया। सिर उठा कर बोला -- आदमी बिना गुरु-दीक्षा लिए हुए भी अपनी बुराइयों पर लज्जित हो सकता है। अपना सुधार करने के लिए गुरु-मन्त्र कोई ज़रूरी चीज़ नहीं।

मुन्शी जी -- अब तो लुच्चे न जमा होंगे?

जियाराम -- आप किसी को लुच्चा क्यों कहते हैं, जब तक ऐसा कहने के लिए आपके पास कोई प्रमाण नहीं?

मुन्शी जी -- तुम्हारे दोस्त सब लुच्चे-लफङ्गे हैं। एक भी भला आदमी नहीं। मैं तुमसे कई बार कह चुका कि उन्हें यहाँ मत जमा किया करो; पर तुमने सुना नहीं। आज मैं आखिरी बार कहे देता हूँ कि अगर तुमने उन शोहदों को जमा किया, तो मुझे पुलिस की सहायता लेनी पड़ेगी।

जियाराम की नम्रता का एक चतुर्थांश और ग़ायब हो गया। फड़क कर बोला -- अच्छी बात है; पुलिस की सहायता लीजिए! देखें पुलिस क्या करती है? मेरे दोस्तों में आधे से ज्य़ादा पुलिस के अफ़सरों ही के बेटे हैं। जब आप ही मेरा सुधार करने पर तुले हुए हैं, तो मैं व्यर्थ क्यों कष्ट उठाऊँ!

यह कहता हुआ जियाराम अपने कमरे में चला गया, और एक क्षण के बाद हारमोनियम के मीठे स्वरों की आवाज़ बाहर आने लगी!