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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/४०२

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पदुमावति । १३ । राजा-गजपति-संबाद-खंड । [९४५-९४६ कथरी का कन्था ( पडा) है ; वह (मो) जहाँ मिले उसी राह में मैं जाऊँ, अर्थात् जाऊँगा ॥ (सो) अब (तो) दूस (प्रेम-समुद्र ) में मुर्दा हो कर, पडा हूँ; जिस में, अर्थात् जिस समुद्र में मेरा प्रेम पानी का भाग है, अर्थात् जैसे दूध, दही, सुरा के समुद्रों में क्रम से जल के स्थान में दूध, दही, और सुरा हैं; उसी प्रकार इस प्रेम के समुद्र में जल के स्थान में मेरा प्रेम है ॥ ( सो अब तो ) मुर्दा हो कर (प्रेम-समुद्र में) बहा हूँ, (चाहे वह समुद्र) कहौं ले जाय; (चाहे) उस (पद्मावती) की राह में कोई पकड कर (धरि ) खावे ( मुझे दूस को कुछ भी परवाह नहीं ) ॥ ऐसा मन में जान कर, (इस ) समुद्र में पडता हूँ। यदि कोई (मुझे) खावे तो (भला है, क्योंकि इस अपार विरह-सागर से ) शीघ्र निस्तराँ, अर्थात् शीघ्र निस्तार पाऊँ ॥ (मेरा) शिर तो स्वर्ग पर (टॅगा) है, और धड धरती पर ( पडौ) है, अर्थात् शिर में जो मस्तिस्क (मगज़ ) है, वह नष्ट हो गया है, केवल धड वे-काम हो कर, धरती पर पडी है, (और) हृदय में वह (सो) प्रेम-समुद्र है, अर्थात् हृदय में वह प्रेम-समुद्र, तरल तरङ्ग मार रहा है। दोनों नयन ( उस समुद्र के) कौडी हो रहे हैं; बूंदों को ले ले कर उठते हैं, अर्थात् पद्मावती के ध्यान से जब तक नयन बंद रहते हैं, तब तक जानों नयन-रूपौ कौडो उस प्रेम-समुद्र में डूबी रहती हैं, और जब बिरह-व्यथा से व्याकुल होने से उन नयनों में जल-विन्दु भर जाते हैं, तब जो नयन खुल जाते हैं, उन को छवि ऐसौ है, जानौँ उस प्रेम-समुद्र की कौडियाँ प्रेम-विन्दु को ले ले कर ऊपर उठ श्राई हैं। कौडौ, घाँचे के मदृश एक समुद्र का जल-जन्तु है, जो प्रायः सर्वत्र प्रसिद्ध है। भाषा में नथन शब्द पुलिङ्ग है, इस लिये K 3 पुस्तक के पाठ ‘हाद रहे' को उत्तम समझ, मूल में निवेशन किया है। बहुत रोते रोते आँखों को कालो पुतलौ में सफेदी श्रा जाती हैं, इस लिये आँखों में विशेष सफेदी श्रा जाने से कौडी को उपमा देना बहुत-ही योग्य है ॥ १४५ ॥ 9 . . - चउपाई। कठिन बिभोग जोग दुख-दाहू। जरत मरत होइ र निबाहू॥ डर लज्जा तहँ दुअ-उ गवाँनी। देखइ किछू न आगि न पानी ॥ आगि देखि ओहि आगइ धावा। पानि देखि तेहि सउँह धसावा ॥