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पृष्ठ:पदुमावति.djvu/५३८

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४३२ पदुमावति । २० । बसंत-खंड । [१६८ जान कौन । - - - द्वार =दरवाजा। मढ = मठ। जोगी= योगी। छाए = छादित किए हैं = छावद (छादयति) का भूत-काल में बहु-वचन । न = नहीं। जनउँ =जानउँ (जानाति) का उत्तम-पुरुष में लट् लकार का एक-वचन । कउन = क्व नु = देस = देश । तद् =ते= से । आए = श्रावद् (आयाति) का भूत-काल में प्रथम-पुरुष का बहु-वचन । जोग = योग । तंत्र = तन्त्र = क्रिया । अब = अधुना = अभौँ । खेला = खेलदू (खेलति) का भूत-काल में बहु-वचन । होद = होने को। निसरे= निसर (निःसरति) का भूत-काल में बहु-वचन । चेला = शिष्य । गुरू = गुरु । कहावा = कहा जाता है (कथ्यते )। A = दत्त्वा =दे कर। काइ = किसी ने। बउरावा = बउरावद (वातलयति) का भूत-काल मैं एक-वचन । कुर = कुमार । बत्तीस-उ = बत्तीस-इ, बत्तीस = द्वात्रिंशत् । लखन = लक्षण = चिह । मो = वह = सः। राता = रक्त = ललित अनुरक्त। दसएँ =दसो अँगुलियों का। कहद कहता है (कथयति)। बाता= वार्ता = बात । जानहुँ = जनु = जानौँ = जाने। श्राहि = है (अस्ति)। गोपिचंद = गोपीचन्द। कई = कि = अथवा । भरथरी भर्तृहरि । बिश्रोगी = वियोगी। पिँगला = पिङ्गला नाडौ = नासिका के दक्षिण पूरे का खर जिस को सूर्य का स्वर कहते हैं। कजरौ= कदली, वा कज्जलो। पारन = अरण्य वन । सिँघला = सिंघल सिंहल । द

क्या जाने । कारन

मूरति = मूर्ति। मुदरा मुद्रा = चिन्ह । देख = देखा। उधूत = अव-धूत । होहि = हैं (मन्ति)। पूत उसी क्षण में एक सखी (श्रा कर) बिहस उठी(कहने लगी कि) पद्मावती रानी, एक कौतुक को (चलो) अवश्य देखो ॥ मन्दिर के पूर्वदार को बहुत से ) योगी छादित किए हुए हैं, अर्थात् पूर्वद्वार पर बहुत से योगी पडे हुए हैं ; नहीं जानते कि कौन देश से आए हैं ॥ जान पड़ता है कि उन लोगों ने अभी योगक्रिया को खेला है, अर्थात् अभी थोडे दिनों से योगाभ्यास में लगे हैं ; (इस लिये ) वे सब चेले सिद्ध होने के लिये निकले हैं ॥ उन में एक जो गुरु कहाता है (उस को ऐसी दशा जान पडती है) जानों किसी ने गुड, अर्थात् गुड में कुछ विष इत्यादि दे कर, उसे बौराहा कर दिया है। वह राज-कुमार बत्तीमो लक्षण से शोभित है (बत्तीसो लक्षण के लिये ४६ दोहे को टोका देखो)। ( हाथ को) दसो अङ्गुलिओं का लक्षण (दूस) एक बात को कहता है ॥ (कि) जानों वह गोपीचन्द योगी है अथवा वियोगी भर्तृहरि है ॥ (गोपीचन्द, और भर्तृहरि के लिये १६३ वे दोहे की टौका देखो।) - कारण ॥ .. 1