पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१७१

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Pada 3] Pilgrimage. ११३ ( Contd. from p. 111 ) जो धरती को त्याग कर आकाश को भी छोड़ दे और बीच में आधार रहित कुटिया बनावे | शून्य शिखर की श्रेष्ठ शिला पर अचल आसन जमावे । जो भीतर रहता उसको बाहर देखे, दूसरा पदार्थ ( उसकी ) दृष्टि में न आवे । कबीर कहते हैं कि हंस को (परमात्मा में) स्थिर कर के आवागमन मिटा देता है ।