पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१७२

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११४ परमार्थसोपान [ Part I Ch. 4 4. THE NAME OF GOD AS THE OIL WHICH ENABLES THE WICK OF MIND TO BE INFLAMED WITH THE FIRE OF GOD. अपने घट दियना बारु रे ॥ टे ॥ नाम के तेल सुरत कै बाती, ब्रम्ह अगिन उदगारु रे ॥ १ ॥ जग मग जोत निहार मन्दिर में, तन मन धन सब वारु रे 113 11 झूटी जान जगत की आसा, बारंबार विसारु रे ॥ ३ ॥ कहे कबीर सुनो भाई साधो आपन काज सँवारु रे 118 11