पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१७७

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Pada 6] Pilgrimage. ११९ (६) अनुवाद. रे रसना, तू राम को क्यो नहीं गाती ? रात दिन पर- अपवाद रट रट कर उसमें व्यर्थ ही क्यों राग बढ़ा रही है ? नर के मुखरूपी सुन्दर पवित्र मन्दिर में बसकर उसको मत लञ्जित कर | चन्द्रमा के समीप रहने से प्राप्त होनेवाली सुधा को त्यागकर रविकर जल के लिये क्यों कलिरूपी कैरव के लिये जो चान्दनी है, दौड़ती है । ऐसी काम कथा को कान भाव देकर सुनते हैं। उनको रोक कर तू हरि की सुन्दर कीर्ति को भज और कानों के कलंक को दूर कर | मति रूपी सुवर्ण के तार से युक्ति रूपी रुचिर मणियों का हार बहुत कौशल के साथ तू बना और शरण सुखद रविकुल रूपी कमल के लिये सूर्य रूपी राजा राम को पहिना | वाद-विवाद के लिये रति को छोड़कर हरि को भज और मेरे चित्त को उनके सरस चरित्र में लगा । तुलसीदास संसार को तर जाय और तू तीनों लोकों में पुनीत यश प्राप्त करे ।