पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१८३

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Pada 9] Pilgrimage. १२५ (९) अनुवाद. ए प्राणी, जब तक चेतना है, तब तक रात दिन चिन्तन कर ले | प्रतिक्षण अवधि उसी तरह व्यतीत हो रही है, जिस तरह फूटे घड़े से पानी चूता है । रे अज्ञान, मूर्ख, हरि के गुण क्यों नहीं गाता ? झूठे लालच में लगकर तूने मर्म को नहीं पहचाना । अगर तू प्रभु के गुण गावे तो अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है । नानक कहते हैं कि प्रभु के . भजन से तू निर्भय पद पावेगा ।