पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१९०

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१३२ परमार्थसोपान [Part 1 Ch. 4 (Contd. from p. 130) कुण्डलिनी को खूब चढ़ावे, ब्रह्मरन्ध्र में जावें । चलता है पानी के ऊपर, मुख बोले सो होवे शास्त्रों में कुछ रहा न बाकी, . ॥ ४ ॥ पूरा ज्ञान कमाया । वेद विधी का मारग चलकर, तन को लकड़ा कीया । ५॥ कहे मछेन्द्र सुनु रे गोरख, तीनो ऊपर जाना । किरपा भई जबै सद्गुरु की, आपहिं आप पिछाना ॥ ६ ॥