पृष्ठ:परमार्थ-सोपान.pdf/१९१

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Pada 12] Pilgrimage १३३ ( Contd. from p. i31 ) कुण्डलिनी को इस प्रकार ऊपर चढ़ाता है कि वह ब्रह्मरन्ध्र में जाये । पानी के ऊपर चलता है । मुख से जो बोलता है, वही होता है । शास्त्रों में कुछ बाकी नहीं रहा । पूरा ज्ञान कमा लिया है । वेद विधि के मार्ग पर चलकर शरीर को लकड़ी कर दिया | मत्स्येन्द्र कहते हैं कि हे गोरख ! सुनो, तीनों (गुणों) के ऊपर हो जाओ । जब सद्गुरु की कृपा होती है तभी अपने आपको पहिचानोगे ।