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प्रतिज्ञा

काहे से वह बड़े समझदार बन गये; और मैं बेसमझ हो गई? इसी मूँछ से! जो आदमी मुझ-जैसी भोली-भाली स्त्री को आज तक अपनी मुट्ठी में न कर सका, वह समझदार नहीं। मूर्ख भी नहीं---बैल है। आखिर मैं क्यों इनकी धौंस सहूँ। जो दस बातें प्यार की करे, उसकी एक धौंस भी सह ली जाती है। जिसकी तलवार सदा म्यान से बाहर रहती हो, उसकी कोई कहाँ तक सहे?

कमला---कहे देता हूँ सुमित्रा, रो-रोकर दिन काटोगी।

सुमित्रा---मेरी बला रोये। हाँ तुम रोओगे।

कमला---मैं अपनी सौ शादियाँ कर सकता हूँ।

सुमित्रा तिलमिला उठी। इस चोट का वह इतना ही कठोर उत्तर दे सकती थी। वह यह न कह सकती थी कि मैं भी हज़ार शादियाँ करे सकती हूँ। तिरस्कार से भरे हुए स्वर में बोली---जो पुरुष एकी को न रख सका, वह सौ को क्या रखेगा। हाँ, चकला बसाये तो दूसरी बात है।

कमला परास्त हो गया। जिसकी नाक पर मक्खी न बैठने पाती थी उसे एक अबला ने परास्त कर दिया। कोई शब्द उसके मुँह से न निकला। रक्तमय आँखों से एक बार सुमित्रा की ओर देखकर उल्टे पाँव चला गया।

दो-तीन मिनट तक दोनो महिलाएँ मौन रहीं। दोनो ही अपने-अपने ढड़्ग पर इस संग्राम की विवेचना कर रही थीं। सुमित्रा विजय-गर्व से फूली हुई थी। उसकी आत्मा उसका लेशमात्र भी तिरस्कार नहीं कर रही थी। उसने वही किया, जो उसे करना चाहिये था; किन्तु पूर्णा

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