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प्रतिज्ञा

देवकी--खत में था क्या?

बदरी॰--यह पड़ा तो है, देख क्यों नहीं लेतीं!

देवकी ने ख़त पढ़कर कहा--तो इसमें इतना बिगड़ने की कौन बात है? ज़रा देखूँ, सरकार ने इसका क्या जवाब लिखा है!

बदरी॰--लो देखो। अभी तो शुरू किया है। ऐसी ख़बर लूँगा कि बचा का सारा शोहदापन भूल जाय।

देवकी ने बदरीप्रसाद का पत्र पढ़ा और फाड़कर फेंक दिया। बदरीप्रसाद ने कड़ककर पूछा--फाड़ क्यों दिया? तुम कौन होती हो मेरा ख़त फाड़नेवाली?

देवकी--तुम कौन होते हो ऐसा ख़त लिखनेवाले? अमृतराय को खोकर क्या अभी सन्तोष नहीं हुआ, जो दानू को भी खो देने की फ़िक्र करने लगे? तुम्हारे ख़त का नतीजा यही होगा कि दानू फिर तुम्हें अपनी सूरत कभी न दिखायेगा। ज़िन्दगी तो मेरी लड़की की ख़राब होगी, तुम्हारा क्या बिगड़ेगा?

बदरी॰--हाँ और क्या, लड़की तो तुम्हारी है, मेरी तो कोई होती ही नहीं।

देवकी--आपकी कोई होती, तो उसे कुएँ में ढकेलने को यो न तैयार हो जाते। यहाँ दूसरा कौन लड़का है प्रेमा के योग्य, ज़रा सुनूँ!

बदरी॰--दुनिया योग्य वरों से खाली नहीं, एक-से-एक पड़े हुए हैं!

देवकी-पास के दो-तीन शहरों में तो कोई दीखता नहीं, हाँ बाहर

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