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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७०१

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भारतेंदु-नाटकावली

एक दूत--ज़रा ठहरो एक बेर इनसे यह तो कहना चाहिये कि ये हट जायँ देखै क्या कहती हैं तब वैसा चल कर कहैंगे।

दूसरा---तुम्हें अपनी जान भारी पड़ी हो तो कहो, हम तो न कहेंगे।

पहिला---( साहसपूर्वक दूर से हाथ जोड़कर ) देबी! तुम ज़रा सा हट जाओ तो हमारे प्रभु की जो आज्ञा है वह करके हम लोग शीघ्र ही प्रभु के पास जायँ। अब व्यर्थ दुःख करने का क्या फल।

सावित्री---( तीक्ष्ण दृष्टि से देख कर ) ख़बरदार, एक पैर भी आगे मत रखना। जा कर अपने प्रभु से कह दो कि प्राण रहते हुए इस शरीर को न छूने दूँगी।

सब---( घबड़ा कर ) अरे बाप रे जले रे ( सब भागते हैं )

( नेपथ्य में गान )

( राग पीलू या जंगला )

"जग में पतिब्रत सम नहिं आन।
नारि-हेतु कोउ धर्म न दूजो जग में यासु समान॥
अनुसूया सीता सावित्री इनके चरित प्रमान।
पतिदेवता तीय जग धन धन गावत वेद पुरान॥
धन्य देस कुल जहँ निवसत हैं नारी सती सुजान।
धन्य समय जब जन्म लेत ये धन्य ब्याह असथान।।