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पृष्ठ:भारतेंदु नाटकावली.djvu/७०२

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भारतेंदु-नाटकावली

यम---यह हमारी सामर्थ्य से बाहर है; अभी तुम्हारे दिन नहीं पूरे हुए हैं; अच्छा हमें अब बहुत देर होती है।

सावित्री--हाय! आपको मुझ अबला पर तनिक भी दया नहीं आती!

यम---सावित्री! हम क्या करै, हमारी क्षमता के बाहर जो बात है वह हम कैसे कर सकते हैं? सत्यवान के सिवाय तुम और जो कुछ चाहो हम देने को प्रस्तुत हैं।

सावित्री---महाराज! मेरे बूढ़े सास ससुर की आँखें जाती रही हैं सो आप कृपा करके दे।

यम---एवमस्तु। अच्छा ले अब हट जाओ। ( सावित्री हट जाती है और यमराज सत्यवान के प्राणवायु को लेकर जाते हैं और पीछे पीछे सावित्री भी जाती है )

( नेपथ्य में गान )

"तुझ पर काल अचानक टूटेगा।
गाफिल मत हो लवा बाज ज्यों हँसी खेल में लूटैगा॥
कब आवैगा, कौन राह से प्रान कौन बिधि छूटैगा।
यह नहिं जानि परैगी बीचहि यह तन दरपन फूटेगा।।
तब न बचावैगा कोई जब काल दंड सिर कूटेगा।
'हरीचंद' एक वही बचेगा जो हरिपद रस घूटैगा॥"

( वह पर्दा हट जाता है, दूसरा दृश्य घोर अरण्य अंधकार मय दिखाई पड़ता है। आगे आगे यमराज पीछे पीछे रोती हुई सावित्री का प्रवेश )