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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/५१९

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वारन हेस्टिंग्स

वारन हेस्टिग्स २५१ किन्तु इंगलिस्तान से धन की मांग बढ़ती गई। वारन हेस्टिंग्स ___ की व्यक्तिगत धन पिपासा भी बनारस की लूट अवध का बगमा से शान्त न हो सकी। बनारस से लौटते ही उसने पर अत्याचार अवध की ओर दृष्टि डाली। बनारस का हाल हमने इंगलिस्तान की पालिमेण्ट के मेम्बर इतिहास लेखक टॉरेन्स की पुस्तक "इम्पायर इन एशिया" सं लिया है। अवध की कहीं अधिक दुखमय कहानी भी ठीक टॉरेन्स ही के शब्दों में नीचे वयान की जाती है। अनेक बार ही कम्पनी की ओर से बड़ी बड़ी रकमें बिना किसी कारण अवध के नवाब से मांगी जा चुकी थी और जबरन वसूल की जा चुकी थीं, किन्तु इस बार- ___नवाब अासाहौला ने अपनी निर्धनता को बिना पर मानी चाही और इस निर्धनता का एक कारण यह बताया कि मुझे अपने यहाँ की 'सबसीडोयरी' सेना के खर्च के लिए एक बड़ी रकम हर साल कम्पनी को देनी पड़ती है। निस्सन्देह यह कारण सञ्चा था। इसके बाद इस डर से कि कहीं (बनारस की तरह ) गवरनर जनरल लखनऊ न श्रा धमके, पास होला स्वयं हेस्टिंग्स से मिलने और अपनी स्थिति समझाने के लिए आगे बढा । चुनार के किले के अन्दर दोनों में बातचीत हुई । वहाँ एक एसी याद रखने योग्य तदबीर निकाली गई, जिससे कलकत्त का ख़ज़ाना भर जावे और लखनऊ का खजाना खाली भी न करना पड़े। लॉर्ड मैकॉले ने लिखा है-'तदबीर केवल यह थी कि गवरनर जनरल और नवाब वज़ोर दोनों मिलकर एक तीसरे शख्स को लूटें, और जिस तीसरे शख्स को लूटने का उन्होंने निश्चय किया, वह इन दोनों लूटने वालों में से एक की माँ थी।' समझा जाता था कि