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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/७८

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पठान

इस प्रकार बारहवीं शताब्दी में दिल्ली के सिंहासन पर पठानों का साम्राज्य स्थापित हुआ जो तीन सौ तेतीस वर्ष तक स्थिर रहा।

पठानों के लोमहर्षण अत्याचार प्रसि हैं। पर उनमें भी आत्मकलह का अन्त न था। वे छल, बल, कौशल से हिन्दू राज्यों को हड़पने लगे।

क्लाकमैन साहब ने लिखा है कि---

"हिन्दुओं का धन ऐश्वर्य ही उनके नाश का कारण हुआ है। इसीसे पठान लोग उसे लूटने को अग्रसर हुए। हिन्दू धर्म उनके राजकीय कामों में विघ्न डालता था। अनगनित तीर्थ पठानों ने विध्वंस कर डाले। तीर्थ जाने की शाही आज्ञा बिना प्राप्त किये कोई तीर्थ यात्रा नहीं कर सकता था। चौदहवीं शताब्दी के मध्यम भाग में प्रत्येक हिन्दू परिवार के वयस्क मनुष्यों की गणना करके आज्ञा निकाली गई थी कि धनवान पुरुष से चालीस, मध्यम से बीस और दरिद्र से दस रुपया जज़िया लिया जाय।

कुतुबुद्दीन एबक ने हाँसी, दिल्ली, मेरठ, कोयल, रणथम्बोर, अजमेर, ग्वालियर, कालिंजर और गुजरात की ईंट से ईंट बजा डाली। हजारों मन्दिर विध्वंस कर दिये। लाखों रन-नारी काट डाले।

कुतुबुद्दीन के गुलाम मोहम्मद इब्ने वख्तयार ने एक सेना लेकर बिहार और बंगाल की ओर कूच किया। मार्ग में उसने काशी के हज़ारों मन्दिरों को विध्वंस कर दिया। बिहार और बंगाल में पाल और सेनवंशी

राजा राज्य करते थे, उन्हें छल से मार डाला गया। बिहार में उस समय बारह हज़ार बौद्ध भिक्षु रहते थे। वहाँ उनका एक बड़ा भारी पुस्तकालय

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