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पृष्ठ:भारत में इस्लाम.djvu/७९

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और विद्यापीठ थी। उन सब भिक्षुओं को क़त्ल कर दिया गया और पुस्तकालय और विद्यापीठ को जलाकर ख़ाक कर दिया। इसके बाद ही अलतमश ने उज्जैन पर आक्रमण किया और महाकाल के मन्दिर को विध्वंस कर वहाँ की करोड़ों रुपये की सम्पदा लूट ली।

इस गुलाम वंश के कुल आठ बादशाह हुए और इन्होंने लगभग सौ वर्ष दिल्ली में राज्य किया।

इसके बाद ख़िलजी वंश का राज्य हुआ जो तीस वर्ष तक रहा। इस वंश के तीन बादशाह हुए। फिरोजशाह इस वंश का प्रथम बादशाह था। उसने जैसलमेर पर आक्रमण किया। उस समय अपने सतीत्व की रक्षा के लिये निरुपाय हो वहाँ की दो हजार चार सौ स्त्रियाँ आग में कूद कर जल मरीं। इसका भतीजा अलाउद्दीन दक्षिण गया और देवगढ़ के राजा रामदेव से कहा कि मैं चचा से लड़कर आया हूँ, मुझे शरण दें। राजा ने शरण दे दी। पर अलाउद्दीन ने अवसर पाकर उत्सव के समय---जबकि राजा की सेना अन्यत्र गई थी, लूट-मार मचा दी। करोड़ों का धन लूटकर महल भस्म कर दिया, राजवंश को क़त्ल कर दिया। चित्तौर की पद्मिनी के लिये चढ़ गया और युद्ध के बाद वहाँ तेरह हज़ार राजपूत स्त्रियाँ प्रतिष्ठा बचाने को आग में पद्मिनी के साथ जल मरीं। गुजरात के राजा करण को मार उसकी रानी और बेटी को छीन लिया। रानी से स्वयं विवाह किया और बेटी से अपने पुत्र का।

इसके शासन में हिन्दुओं की अति दयनीय दशा हो गई थी। एक बार काजी ने उससे कहा था---"आपके राज्य में काफ़िरों की ऐसी दुर्दशा हो गई है कि उनके स्त्री बच्चे मुसलमानों के द्वार पर रोते और भीख माँगते फिरते हैं। इस शुभ काम के लिये यदि खुदा आपको जन्नत न भेजे तो मैं जिम्मेदार हूँ।"

फ़िरोज़शाह के शासन में यह विधान था कि "ज्यों ही कोई शाही नौकर हिन्दुओं से कोई कर चाहे त्योंही वह अति विनीत भाव से सिर झुका कर दे दे। यदि कोई मुसलमान किसी हिन्दू के मुँह में थूकना चाहे तो उसको चाहिये कि सीधा खड़ा रहकर मुँह को खोले रहे जिससे उस मुसलमान को अपना मतलब हल करने का पूरा सुभीता रहे। मुँह में