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पृष्ठ:भाषा-विज्ञान.pdf/६

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विचार किया जाता है। अर्थ-विचार का प्रकरण तो अभी तक आरंभिक अक्त्या में है, पर अब भाषा-शास्त्रियों का ध्यान इस ओर आकर्षित हुश्रा है और दिनों दिन इस अंग का अध्ययन तथा विवेचन किया जाने लगा है। सातवें प्रकरण को उपहार स्वरूप मानना चाहिए। इसमें पार्यों के मूल निवास स्थान, उनके विच्छेद तथा अनेक देशों में जाकर बस जाने का वर्णन है। भाषा-विज्ञान की सहायता से प्रागैतिहासिक पान का इतिहास किस प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता है, इसका दिग्दर्शन भी करा दिया गया है। श्राशा है कि इस पुस्तक से भाषा-विज्ञान का प्रारंभिक ज्ञान भली भांति प्राप्त हो जायगा और इस शास्त्र के विशेष अध्ययन का मार्ग बहुत कुछ प्रशस्त हो जायगा । इस पुस्तक के पहले, दूसरे, तीसरे और सातवें प्रकरणों के प्रस्तुत करने में मेरे पुत्र गोपाललाल खन्ना ने मेरी सहायता की है, चौथा प्रकरण भाषा- रहस्य के आधार पर उसके इसी प्रकरण का संक्षित रूप है और पांचवें तथा घटे प्रकरणों के प्रस्तुन करने में पंडित पद्मनारायण श्राचार्य का सहयोग मुझे प्राप्त हुआ है। अनुक्रमणिका तैयार करने का श्रेय पंडित रमापति शुक्ल को है। ये सभी व्यक्ति नाशीर्वाद तथा धन्यवाद के पात्र हैं। मुझे इस बात का अभिमान है कि मेरे कतिपय विद्यार्थी सदा मेरी सहायता को तैयार रहते हैं और प्रेमपूर्वक मेरे कार्यों में सहयोग देते हैं । इस पुस्तक की समाप्ति के साथ मेरी तीन पुस्तकों-हिंदी भाषा और साहित्य, साहित्यालोचन और भाषा-विज्ञान के परिवर्धित और, संशोधित संस्करणों की त्रिवेणी प्रस्तुत हो गई है। आशा है कि इस त्रिवेणी में अवगाहन कर विशेष कर हिंदी तथा साधारणत: अन्य अाधुनिक भाषाओं के विद्यार्थी यथेष्ट फल प्राप्त कर सकेंगे। काशी ज्येठ शु० १०,१६६५ } 1 श्यामसुंदरदास -