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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/३५३

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  • राजकीय परिखिति । ॐ

का, इस तरहके सिक्कोका, प्रचार न था। परन्तु यह कहना कठिन नहीं है कि महा. बौद्ध प्रन्थोसे मालूम होता है कि उस भारत-कालमें निष्क सिक्के थे और समय ताँबे अथवा चाँदीके "पण" सोनेके रजकणकी थैलियाँ नहीं थी। प्रचलित थे। परन्तु महाभारतमें यह ' क्योंकि यह ऊपर बतलाया जा चुका है शब्द कहीं नहीं मिलता । महाभारतमें कि उनका उपयोग पुतलीकी तरह माला निष्कका नाम बारबार आता है । यह बनाने में किया जाता था। चाणक्यके भर्थ- सोनेका सिक्का था । मालूम नहीं इसका शास्त्रमें चन्द्रगुप्तके स्वजानेका वर्णन करते क्या मूल्य था । 'हुन' और पुतलीकी समय स्वर्णशालाका उल्लेख हुआ है। अपेक्षा वह वड़ा होगा: क्योंकि निष्क उसमें विस्तारपूर्वक बतलाया गया है कि दक्षिणा मिलने पर ब्राह्मणोंको श्रानन्द भिन्न भिन्न धातुओंको परीक्षा कैसे करनी होता था और ऐसा आनन्द-सूचक चाहिए । अतएव यह नहीं कहा जा वर्णन पाया जाता है कि-"तुझे निष्क सकता कि हम लोगोंने धातुसंशोधन मिल गया, तुझे निष्क मिल गया ।” और सिक्के बनानेकी कला प्रीक लोगोंसे अनुमान है कि निष्क सिक्के वर्तमान सीवी । इसके सिवा नीचेके श्लोकमें मुहरके बराबर रहे होंगे। यह भी वर्णन मुद्रायुक्त मिक्केका स्पष्ट वर्णन है । यद्यपि है कि श्रीमान् लोगोंकी दामियोंके गलेमें उसका अर्थ गृढ़ है तथापि उसमें मुद्रा पहनने के लिए इन निष्कोंकी माला नैयार ' शब्द स्पष्ट है। की जाती थी: और गजाओंकी दासियों- माता पुत्रः पिता भ्राता भार्या मित्रजनस्तथा। लिए निष्ककराठी विशेषणका बारबार अष्टापदपदस्थाने दक्ष मुद्रेव लच्यते ॥ प्रयोग किया गया है। महाभारत-कालके । (शां० अ० २०८-४०) सिक्के आजनक कहीं नहीं मिले हैं। न्याय-विभाग। इससे पाश्चात्य विद्वानोंका तर्क है कि आजकलके उन्नत ब्रिटिश राज्यकी महाभारत-कालमें यानी चन्द्रगुप्त कालमें मुल्की व्यवस्था प्राचीन कालके भारती मिक्कोका प्रचार ही नहीं था । सोनेके श्राोंके गज्योंकी मुल्की व्यवस्थासे बहुत रजकण एक छोटीसी थैलीमें रखकर भिन्न न थी । परन्तु प्राचीन कालकी विशिष्ट वजनके सिक्कोंके बदले काममें न्याय-व्यवस्था और आजकलकी न्याय- लाये जाते थे। उनका कथन है कि सिके व्यवस्थामें बड़ा अन्तर है । कारण यह बनानेकी कला हिन्दुस्थानियोंने ग्रीक लोगों- है कि हिन्दुस्थानकी ब्रिटिश राज्यकी से सीखी। यह बात सच है कि प्राचीन मुल्की व्यवस्था हिन्दुस्थानकी पुरानी कालमें इस तरहसे सोनेके ग्जका उपयोग व्यवस्थाके आधार पर ही रची गई है। किया जाता था। सोनेके रज तिब्बत परन्तु आजकलकी न्याय पद्धति बिलकुल देशसे आते थे। उनका वर्णन आगे होगा। विदेशी है। हिन्दुस्थानकी प्राचीन न्याय- परन्तु पाश्चात्य इतिहासों में लिखा है कि पद्धतिसे उसका कुछ भी सम्बन्ध नहीं हिन्दुस्थानके भागोंसे पर्शियन बादशाहो- है। वह इंग्लैगड देशकी न्याय-पद्धतिके को दिया जानेवाला राजकर रज स्वरूपमें आधार पर बनाई गई है। इस कारण ही दिया जाता था। हम पहले बतला हिन्दुस्थानके लोगोंका बड़ा नुकसान चुके हैं कि हरिवंशके एक श्लोकमें दीनार हुआ है। क्योंकि यह कहा जा सकता है शब्द आया है। पर यह श्लोक पीछेका है। कि हिन्दुस्थानके लोगोंमें आजकल मुक