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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६०६

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महाभारतमीमांसा

• महाभारतमीमांसा पश्चात्की है। अर्थात् यह माननेमें कोई स्थानों में महीनोंकी गणना मार्गशीर्षसे आपत्ति नहीं कि दशोपनिषद् ब्राह्मणोंके प्रारम्भ की गई है । अनुशासन-पर्वके भाग हैं । यह मान सकते हैं कि भगवद्- २०६ वें अध्यायमें यह वर्णन है कि विष्णु- गीता उनके पश्चात्की या लगभग उसी के बारह नामोसे बारह मासतक उपवास समयकी है । परन्तु इस वाक्यसे कि करनेका फल क्या होता है। वहाँ भी 'मार्गशीर्ष पहला महीना और वसन्त महीने मार्गशीर्षसे ही प्रारम्भ किये गये पहली ऋतु' यह दिखाई देता है कि भग- हैं। उसमें यह भी बताया है कि हर महीने- पद्गीता वेदाङ्ग ज्योतिषके पहलेकी है। में एक-भुक्त उपवास करनेसे क्या फल पहले यह बतलाया जा चुका है कि वेदाङ्ग- मिलता है। इससे कहना पड़ता है कि में उत्तरायण वसन्तके सम्पातसे न मान- सामान्यतः महाभारत-कालतक महीनों- कर मकर-संक्रमणसे मानने लगे। वेदाङ्ग- का प्रारम्भ मार्गशीर्षसे होता था। पारा- कालमें यह उत्तरायण माघ महीने में होता शर गृह्यसूक्तमें कहा है कि मार्गशीर्षकी था और इससे ज्योतिषियोंके मतके अनु- पूर्णिमाके दिन वर्षकी इष्टि करनीचाहिए। सार वर्षका प्रारम्भ माघसे होता था। पर वहाँ हेमन्त ऋतुको ही प्रधानता दी पाँच वर्षका युग मानकर दो अधिक मास गई है। क्योंकि वर्णन ऐसा है कि हेमन्त इस हिसाबसे सम्मिलित किये गये कि ऋतुको ही हविर्भाग देनाचाहिए । अर्थात् एक मास माघके प्रारम्भमें और एक ढाई | यह स्पष्ट है कि मार्गशीर्ष मासके साथ वर्षके बाद श्रावणके पहले माना जाय। हेमन्तको आदि ऋतु मानना चाहिए । अर्थात् यह स्पष्ट है कि यदि वर्षका आदि परन्तु यह एक बड़ा ही आश्चर्य है कि माघ माना जाय, तो ऋतुओका आदि भगवद्गीतामें 'मासानां मार्गशीर्षोऽहं' निना होगा । इस प्रकारकी कहकर 'ऋतनां कुसुमाकरः' क्यों कहा? गणना भारती-कालमें किसी समय थी। इससे यह अनुमान निकल सकता है कि यह बात महाभारतके अश्वमेध पर्वके इस यह श्लोक ब्राह्मणोंके पश्चात् ही लिखा श्लोकसे दिखाई पड़ती है- गया होगा। यह कहना होगा कि यह अहः पूर्व ततो रात्रि- श्लोक नये महीनोंके प्रचलित होनेके पश्चात् र्मासाः शुक्लादयः स्मृताः। अस्तित्व में आया और उस समय वैदिक श्रघणादीनि ऋक्षाणि कालकी ऋतुएँ हो प्रचलित थीं। निश्चय ऋतवः शिशिरादयः॥ यह होता है जब यह श्लोक लिखा गया तब (२०४४) या तो वेदाङ्ग ज्योतिषके माघादि महीने इसमें कहा है कि ऋतुओका प्रारम्भ प्रचलित न थे या शिशिरादि ऋतुओको शिशिरसे होता है। यह श्लोक अनुगीता- गणना ही नहीं की जाती थी। का है और इसमें दिखाया है कि ऋतुओं यहाँ प्रश्न उपस्थित होता है कि वैदिक तथा महीनोंका प्रारम्भ भिन्न रीतिसे होता कालकी ऋतुगणना-प्रचारके समय अब है। यहाँमाना गया है कि नक्षत्रोंका प्रारम्भ महीनोंके नये नाम प्रचलित हुए, तब श्रवणसे होता है । अस्तु । दीक्षितने बत- चैत्रादि ही प्रचलित क्यों नहीं किये गये ? लाया है कि यह काल ईसासे लगभग यह सच है कि वैदिक कालमें ऋतुकी ४५० वर्ष पूर्वका है। यहाँ यह बतलाता गणना धसन्तसे होती थी, परन्तु जिस देना समयोचित है कि महाभारतमें अन्य समय पार्यलोग यमुनाकोपारकर दक्षिणमें