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पृष्ठ:महाभारत-मीमांसा.djvu/६०७

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® भगवद्गीता-विचार। ॐ = सौराष्ट्र प्रान्तमें समुद्रतक बसने लगे, उस नक्षत्र पीछे हटकर उदगयन श्रवण पर समय इस गरम मुल्कमें जाड़ेके दिन होने लगा। वह काल गणितसे ई० सनले विशेष दुखदायी जान पड़े होंगे और मार्ग- लगभग ४५० वर्ष पूर्वका निकलता है। शीर्षसे ही महीनोंका गिनना प्रारम्भ हुआ उस समयका अनुगीताका 'श्रवणादीनि होगा। निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है। नक्षत्राणि ऋतवः शिशिरादयः' वाक्य है। कि यह परिपाटी बहुत पुरानी है। यह अर्थात् उस समय माघादि महीने और परिपाटी भगवद्गीता, महाभारत, पार- शिशिरादि ऋतुएँ थीं। उसके बाद महाभा- स्कर गृह्यसूत्र आदि सभी कहीं पाई जाती रतके अन्तिम संस्करणका समय है; परन्तु है; और तो और, देखने योग्य है, कि वह इस समस्त कालमें, भगवद्गीताने जो मार्ग- अमरकोशमें भी दी गई है। श्रमरकोशमें शीर्षादि गणना प्रचलित कर दी थी वह जो महीनोंके नाम हैं वे मार्गशीर्ष महीने भी जारी रही। और साथ ही साथ, से दिये गये हैं। 'मार्गशीर्षः सहामार्ग' ऋतुएँ हेमन्तादि थीं, जैसा कि पारस्कर आदि श्लोक प्रसिद्ध हैं। साथ ही साथ गृह्यसूत्र तथा अमरकोशमें बताया गया ऋतुओके नाम हेमन्तसे ही दिये गये हैं। है। इन सब भिन्न भिन्न प्रन्योंकी प्रणाली- उसमें 'बाहुलोर्जी कार्तिकिको' कहकर से यह अनुमान निकाला जा सकता है 'हेमन्तः शिशिरोऽस्त्रियाम्' कहा है, और कि भगवद्गीताका काल ई० सन्से २००० अन्तमें 'षडमी ऋतवः पुंसि मार्गादीनां वर्ष पूर्व और १४०० वर्ष पूर्वके मध्यका युगैः क्रमान' लिखा है। 'अमर' प्रायः होगा: अर्थात् वह उपनिषत्-कालके अन- ईसवी सनके पश्चात दृश्रा है: पर वह भी न्तर और वेदाङ्ग-ज्योतिषके पूर्वका होगा। चैत्रादि मास नहीं लिखता. इससे मालम होगा कि जब कोई नई गणना शुरू हो . "मधु आदि महीनोके नाम ऋतुओसे सम्बद्ध जाती है तब वही बहुत दिनोंतक किस हैं, पर नक्षत्रोसे उनका कोई सम्बन्ध नहीं है," ( भारसी प्रकार जारी रहती है। अलबरूनीने लिखा ज्योतिपशास्त्र पृ० ३७)-यह अंश ध्यानमें रखना चाहिए। वैदिक कालमें यद्यपि 'मधुश्च माधवश्च वसन्तः है कि उसके समयमें सिन्धादि प्रान्तोमे । कहा जाता था, तथापि उस समय इसका मेल चैत्र, महीने मार्गशीर्षादि थे। तात्पर्य यह है कि वैशाख आदि नाक्षत्र महीनोंसे नही था। यह मेल ईसवी महीनोंके नाम सबसे पहले मार्गशीर्ष सन्के प्रारम्भमें उस समयसे हुआ जब कि महीनोंकी आदि पड़े और वे शौरसेनी, सौराष्ट्र गणना चैत्रादि और नक्षत्रोंकी अश्विन्यादि की जाने लगी। आदि प्रदेशोंमें शुरू हुए । यह अवश्य है उसी समयसे मधुका पयायवाची चैत्र निर्दिष्ट हुआ। कि प्रारम्भमें वैदिक-कालकी ही वसन्तादि वैदिक कालमे मधु आदि नाम कृत्तिकादि नक्षत्रोंक साथ तोका प्रचार रहा होगा। इस समय वसन्तका नाक्षत्र महोना कौनसा था। यह स्पष्ट है प्रचलित थे। अब यह मालूम करना चाहिए कि उस सम्बन्धका भगवद्गीताका वाक्य ई०सन्के कि वह चैत्रके आगेका होगा। आजकल वसन्त चैत्रके पहले आ गया है। मध्वादि नाम ई० सनसे लगभग | ५००० वर्ष पूर्व के है। और चैत्रादि नाम ई० सन्से २००० तिषमें माघादि महीने निश्चित हुए और | वर्ष पूर्वके है (उपर्युक्त ग्रन्थ, पृष्ठ १४६) । स्पष्ट है कि उस धनिष्ठादि नक्षत्र थे, क्योकि धनिष्ठामें समय मार्गशीर्ष में वसन्त नहीं था; किन्तु वसन्तारम्भ बहुधा वैशाखमें होता होगा। यह भी तर्क हो सकता है उदगयन था। इस प्रकार गणितके श्राधार बहुधा कि उस समय मार्गशीर्षादि मासगणना प्रायहायणी पर यह काल ई०सन्से १४०० वर्ष पूर्वके पणिमाके मृगशीर्ष नक्षत्रमे दुई होगी, परन्तु इस विषयकी लगभग निश्चित होता है। अनन्तर एक अधिक चर्चा करनेकी आवश्यकता नही। २००० पर